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________________ ५०६ क्षपणासार एकभागमात्र प्रदेश प्रथम समयविर्षे ग्रहि कृष्टि करिए है । सो इनिका प्रमाण सर्व अपूर्व स्पर्धकनिके प्रदेशनिका प्रमाणके असंख्यातवै भागमात्र है। बहुरि अपूर्व स्पर्धकनिकी जघन्य वर्गणाका वर्गके जैते अविभागप्रतिच्छेद हैं तिनके असंख्यातवें भागमात्र उत्कृष्ट अन्त कृष्टिके एक प्रदेशसम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेदनिका प्रमाग हो है। बहुरि इहां प्रथम समयविर्षे अपकर्षण कीया प्रदेश देने का विधान कहिए है जघन्य कृष्टिविर्षे बहुत प्रदेश दीजिए है। ताके ऊपरि द्वितीयादि अन्त पर्यन्त कृष्टिनिविर्षे विशेष घटता क्रम लीएं द्रव्य दोजिए है। इहां विशेषका प्रमाण प्रथम कृष्टिकौं जगच्छेणिका असंख्यातवां भागका भाग दीएं आवै है। बहुरि अन्त कृष्टिनै अपूर्व स्पर्धककी प्रथम वर्गणा विर्षे असंख्यातगुणा घाटि दीजिए है। बहुरि उपरि विशेष घटता क्रम लीएं प्रदेश दीजिए है । इहां प्रथम समय वि कीनी कृष्टिनिका प्रमाण है सो एक स्पर्धक विषं जितना वर्गणानिका प्रमाण ताके असंख्यातवै भागमात्र है ।।६३६।। ओकड्डदि पडिसमयं जीवपदेसे असंखगुणियकमे । तग्गुणहीणकमेण य करेदि किट्टि तु पडिसमए'॥६३७॥ अपकर्षति प्रतिसमयं जीवप्रदेशान् असंख्यगुणितक्रमेण । तद्गुणहीनक्रमेण च करोति कृष्टि तु प्रतिसमयं ॥६३७॥ स० चं-द्वितीयादि समयनिविर्षे समय समय प्रति असंख्यातगुणा क्रमकरि जीवके प्रदेशनिकौं अपकर्षण करै है। बहुरि समय समय प्रति पूर्व समयविष कोनी जे कृष्टि तिनके नीचें असंख्यातगुणा घटता क्रम लीएं नवीन कृष्टि करै है। इहां अपकर्षण कीया प्रदेश देनेका विधान कहिए है नवीन कृष्टिकी प्रथम कृष्टिविर्षे जो बहुत प्रदेश दीजिए है ताके ऊपरि द्वितीयादि अन्त पर्यन्त कृष्टिनिवि विशेष घटता क्रम लीए दीजिए है । ताके ऊपरि पूर्व समयवि कोनी कृष्टिकी प्रथम कृष्टिविर्षे असंख्यातगुणा घटता दीजिए है। इस कृष्टिविर्षे पूर्व जेते प्रदेश थे तितने अर एक विशेष इतना प्रदेश नवीन अन्त कृष्टिनै याविष घाटि दीजिए है। बहरि ताके ऊपरि अन्त कृष्टिपर्यन्त विशेष घटता क्रम लीए दोजिए है। इहां मध्यम खंडादिविधान पूर्वोक्त प्रकार जानना । बहुरि अन्त कृष्टिविर्षे दीया द्रव्यतै अपूर्व स्पर्धककी आदि वर्गणाविर्षे दीया प्रदेश संख्यातगुणा जानना। ताके ऊपरि अन्त पूर्व स्पर्धक वर्गणापर्यन्त विशेष धटता क्रम लीएं प्रदेश दीजिए है ॥६३७॥ सेढिपदस्स असंखं भागमपुन्वाण फड्ढयाणं व । सव्वाओ किट्टीओ पल्लस्स असंखभागगुणिदकमा ॥६३८।। १. एत्य अंतोमुहुत्तं करेदि किट्टीओ असंखेज्जगुणहीणाए सेढीए । जीवपदेसाणमसंखेज्जगुणाए सेढीए । क० चु०, पृ० ९०५ । २. किट्टीगुणगारो पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो। किट्टीओ सेढीए असंखेज्जदिभागो । अपुव्वफद्दयार्ण पि असंखेज्जदिभागो । क० चु०, पृ० ९०५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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