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________________ ४७४ क्षपणासर क्रम लीएं द्रव्य दीजिए है। ताके ऊपरि हीन क्रम लीए संख्यातगुणा घटता बहुरि हीन क्रमलीए द्रव्य दीजिए है । सोई कहिए है। गुणश्रेणिआयामका प्रथम निषेकविर्षे दीया द्रव्यकी एक शालाका, तातै द्वितीय निषेकविर्षे दीया द्रव्यको शालाका पल्यको असंख्यातवां भागगुणी है। ऐसे क्रमतें गुणकार लीए अन्त निषेकपर्यंत जेती शालाका होइ तिनका जोड दीए जो प्रमाण होइ ताका भाग गुणश्रेणिविर्षे देने योग्य पूर्वोक्त द्रव्यकौं देइ तहां एक भागकौं अपनी अपनी शालाका प्रमाणकरि गुणें प्रथमादि निषेकनिविर्षे द्रव्य देनेका प्रमाण आवै है। अंक संदृष्टिकरि जैसैं एकतै लगाय चौगुणी-चौगुणी शलाका च्यारि निषेकनिविर्षे स्थापि १।४।१६।६४। जो. पिचासी होइ । ताका भाग द्रव्यकौं देइ एक च्यारि आदिकरि गुणें प्रथमादि निषेकनिविषै दीया द्रव्यका प्रमाण आवै है। इहां गुणकारविर्षे जोड़ देनेका प्रमाण करणसूत्र यह जानना पदमितगुणहतिगुणितप्रभेदः स्याद्गुणधनं तदा तदा द्वयूनं । एकोनगुणविभक्तं गुणसंकलितं विजानीयात् ।।१।। गच्छमात्र गुणकारनिकौं परस्पर गुण गुणधन होइ। तहां प्रथम स्थान घटाइ अवशेषकों एक घाटि गुणकारका भाग दीएं गुणकार विर्षे संकलनधन आवे है। जैसैं इहां संदृष्टिवि. गच्छ च्यारि, गुणकार च्यारि, सो च्यारि जायगा च्यारि च्यारि माडि परस्पर गुण दोयसै छप्पन होइ, तामै आदि एक घटाइ अवशेषकों एक घाटि गुणकार तीन, ताका भाग दीएं जोड पिच्यासी हो है। सो ऐसें वर्तमान उदयरूप गुणश्रेणिका प्रथम निषेकतें लगाय गुणश्रेणि शीर्षपर्यंत दीजिए है । गुणश्रेणिका अन्तका निषेककौं गुणश्रेणिशीर्ष कहिए है, सो सूक्ष्मसांपरायका प्रथम समयविर्षे तो इहां कह्या गणश्रेणि आयाम ताका जो अन्त निषेक सोई गणश्रेणिशीर्ष है। बहरि द्वितीयादि समयनिविषै एक एक समय व्यतीत होते जो अन्तरायामका प्रथमादि निषेक गणश्रेणिविर्षे (श्रेणि ) मिल्या सो गुणश्रेणीशीर्ष है । जातै इहां अवस्थित गुणश्रेणिआयाम है। बहुरि गुणश्रेणिके उपरिवर्ती जो अंतरायामके निषेक तिनिविर्षे द्रव्य देनेका विधान कहिए है ___ अंतरायामविर्षे देनेयोग्य जो पूर्वोक्त द्रव्य ताकौं अंतरायाममात्र गच्छका भाग दीएं मध्यम धन होड। तीहिविर्षे एकघाटि गच्छका आधा प्रमाणमात्र विशेष जोड़ें जो होइ तितना द्रव्य अंतरायामका प्रथम निषेकविय दीजिए है सो यह द्रव्य गुणश्रेणिशीर्षविौं दीया द्रव्यते असंख्यातगुणा है । तातै सूत्रविौं अन्तरायामका प्रथम निषेकपर्यंत असंख्यातगुणा देय द्रव्य कया । बहुरि ताके ऊपरि अंतरायामके द्वितीयादि निषेकनिविौं एक एक विशेषकरि घटता क्रमलीएं द्रव्य दीजिए है सो यावत् अंतरायामका अंत निषेक होइ तावत् ऐसा क्रम जानना । अब द्वितीय स्थितिनिषेकनिविौं द्रव्य देनेका विधान कहिए है द्वितीय स्थितिविौं देनेयोग्य जो पूर्वोक्त द्रव्य ताकी आवली रहित द्वितीय स्थितिका प्रमाणमात्र जो गच्छ ताका भाग दीएं मध्यधन होइ। यामै एक घाटि गच्छका आधा प्रमाणमात्र विशेष जोड़े जो होइ तितना द्रव्य द्वितीय स्थितिका प्रथम निषेकविणें दीजिए है। सो यह दीया द्रव्य अंतरायामका अंत निषेकविौं दीया द्रव्यतै संख्यातगुणा घटता है। तातै सूत्रविौं इहां दीया द्रव्य संख्यातगुणा घटता कहया । बहुरि ताके उपरि द्वितीय स्थितिके द्वितीयादि निणेकनिविर्षे एक एक विशेष घटता क्रमकरि द्रव्य दीजिए है। ऐसे देय द्रव्यका विधान कया ॥५८६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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