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________________ ४६८ क्षेपणांसार तातै मायाकी प्रथम संग्रह कृष्टितै लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिविर्षे संक्रमण भया प्रदेश विशेष अधिक है। इहां पात्रानुसारि विशेषका प्रमाण आवलीका असंख्यातवां भागका भाग दीए एक भागमात्र है । बहुरि तातै मायाकी द्वितीय संग्रहतें लोभको प्रथम संग्रहकृष्टिविर्षे संक्रमण भया प्रदेश विशेष अधिक है । तातै मायाकी तृतीय संग्रहः लोभकी प्रथम संग्रह विर्षे संक्रमण भया प्रदेश विशेष अधिक है। इहां दोऊ जायगा विशेषका प्रमाण पल्यका असंख्यातवां भागका भाग दीए एक भागमात्र है। तातै लोभकी प्रथम संग्रह कृष्टि” लोभकी द्वितीय संग्रह कृष्टिविर्षे संक्रमण भया प्रदेश समूह विशेष अधिक हैं। इहां पात्रानुसारि विशेषका प्रमाण आवलीका असंख्यातवां भागका भाग दीए एक भागमात्र है । इहां प्रश्न जो अन्य कषायको संग्रहकृष्टिका द्रव्य अन्य कषायको संग्रह कृष्टिविर्षे संक्रमण होना कह्या तहां परस्थान संक्रमणविर्षे अपने अपने द्रव्यकौं अधःप्रवृत्त भागहारका भाग दीए एक भागमात्र द्रव्य संक्रमण हो हैं, तातै अन्य कषायविर्षे संक्रमण द्रव्यतै विशेष अधिकका क्रम कह्या सो तो बने है। बहुरि लोभकी प्रथम संग्रहत ताहीकी द्वितीय संग्रहविर्षे संक्रमण भया सो इहां स्वस्थान संक्रमण है। सो इहां अपने द्रव्यकौं अपकर्ष भागहारका भाग दीए एकभागमात्र द्रव्य संक्रमण हो है। अर अधःप्रवृत्त भागहारतें अपकर्षण भागहार असंख्यातगुणा घटता है, तातै पूर्वोक्त संक्रमण द्रव्यतै याका संक्रमण द्रव्य असंख्यातगुणा कहो, विशेष अधिक कैसे कही हो? ताका समाधान __ इहां परिणामके अतिशयतै अधःप्रवृत्त भागहार भी अपकर्षण भागहारहीके अनुसारि बर्तं है सो ऐसा विशेष इहां ही संभवे है, अन्यत्र सर्वत्र अधःप्रवत्त भागहारतें अपकर्षण भागहार असंख्यातगुणा घटता ही जानना । बहुरि ताते लोभकी प्रथम संग्रह कृष्टिनै लोभकी तृतीय संग्रह कृष्टिवि संक्रमण भया प्रदेश विशेष अधिक है। इहां पात्रानुसारि विशेषका प्रमाण पल्यका असंख्यातवां भागका भाग दीए एक भागमात्र है। ऐसे दश स्थान अधिक क्रम लीए जानने ॥५७५-५७६॥ विशेष-कृष्टिकरण कालके समाप्त होने पर तदनन्तर समयमें जो क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिका अपकर्षण कर वेदन करता है वह प्रथम समयवर्ती कृष्टिवेदक कहलाता है। उसके क्रोधकी द्वितीय सग्रह कृष्टिसे मानकी प्रथम कृष्टि में संक्रमित होनेवाला प्रदेशपूंज सबसे थोड़ा है। उससे क्रोधको ततीय संग्रह कृष्टिसे मानकी प्रथम संग्रह कृष्टि में संक्रमित होनेवाला । प्रदेशपुंज विशेष अधिक है । क्रोधकी तृतीय संग्रह कृष्टिमें पल्योपमके असंख्यातवें भागका भाग देने पर जो एक भाग प्राप्त हो उतना विशेषका प्रमाण है । उससे मानकी प्रथम संग्रह कृष्टिसे मायाकी प्रथम कृष्टिमें संक्रमित होनेवाला प्रदेशज विशेष अधिक है। यहाँ मानकी प्रथम संग्रह कृष्टिमें आवलिके असंख्यातवें भागका भाग देने पर जो एक भाग प्राप्त हो उतना विशेषका प्रमाण है। इसी प्रकार आगे जानना चाहिये । टीकामें स्पष्टीकरण किया ही है । कोहस्स य पढमादो माणादी कोधतदियविदियगदं। तत्तो संखेज्जगुणं अहियं संखेज्जसंगुणियं ॥ ५७७ ।। १. कोहस्स पढमसंगहकिट्टीदो माणस्स पढमसंगहकिट्टीए संकमदि पदेसम्ग संखेज्जगुणं । कोहस्स Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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