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________________ ४२५ उदय और बन्धरूप कृष्टियोंके अल्पबहुत्वका विचार प्रतिसमयमहिगतिना उदये बंधे च भवति उत्कृष्टं। बंधोदये च जघन्यं अनंतगुणहीनका कृष्टिः ॥५२१।। स० चं०-समय-समय प्रति सर्पकी गतिवत् उत्कृष्ट कृष्टि तौ उदय अर बन्ध विर्षे बहुरि जघन्य कृष्टि बन्ध अर उदय विर्षे अनन्तगुणा घटता क्रमलीएं अनुभाग अपेक्षा जाननी। सोई कहिए है सर्व कृष्टिनिके अनंत बहुभागमात्र बीचिकी कृष्टि बंधरूप हैं, तिन” साधिक उदयरूप हैं । तिन विर्षे जो सर्वतै स्तोक अनुभाग लीए प्रथम कृष्टि सो जघन्य कृष्टि कहिए। सर्वतें अधिक अनुभाग लीए अन्त कृष्टि सो उत्कृष्ट कृष्टि कहिए । तहाँ कष्टिवेदकका प्रथम समय विर्षे जो उदयकी उत्कष्ट कष्टि सो बहत अनुभागयक्त है। तातै तिसही समयविर्षे बन्धकी उत्कष्ट कष्टि अनंतगुणा घटता अनुभाग लीए है । तातै द्वितीय समयविर्षे उदयकी उत्कृष्ट कृष्टि अनंतगुणा घटता अनुभाग लीएं है । तातै तिसही समयविर्षे बन्धकी उत्कृष्ट कृष्टि अनंतगुणा घटता अनुभाग लीए है । तातें तीसरा समय विर्षे उदयकी उत्कृष्ट कृष्टि अनंतगुणा घटता अनुभाग लीएं है । तात तिस समय विर्षे बन्धकी उत्कृष्ट कृष्टि अनन्तगुणा घटता अनुभाग लीएं है । या प्रकार जैसे सर्प इधरते इधर उधरतें इधर गमन करै है तैसैं विवक्षित समयविर्षे उदयकीतै बन्धकी अर पूर्व समयसम्बन्धी बन्धकीतै उत्तर समयसम्बन्धी उदयकी उत्कृष्ट कृष्टिविर्ष अनन्तगुणा घटता अनुभाग क्रमतें जानना । बहुरि कृष्टिवेदकका प्रथम समयविर्षे बन्धकी जघन्य कृष्टि बहुत अनुभागयुक्त है। तातें तिस समयवि उदयकी जघन्य कृष्टि अनन्तगुणा घटता अनुभागयुक्त है। तातें दूसरा समय विर्षे बन्धकी जघन्य कृष्टि अनंतगुणा घटता अनुभागयुक्त है, तात तिस समयविर्षे उदय की जघन्य कृष्टि अनन्तगुणा घटता अनुभागयुक्त है। ऐसें सर्पको चालवत् एक समयविर्षे बन्धकीत उदयकी अर पूर्व समयसम्बन्धी उदयकीर्ते उत्तर समयसम्बन्धी बन्धकी जघन्य कृष्टि वि अनन्तगुणा अनन्तगुणा घटता अनुभाग जानना। ऐसी प्ररूपणा क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टि वेदककालका अंत समय पर्यंत है । बहुरि ताकी द्वितीय तृतीय संग्रह कृष्टि वेदककै भी ऐसे ही क्रम जानना ॥५२१।। विशेष-क्रोधसंज्वलनकी जो प्रथम संग्रह कृष्टियाँ बन्ध उदयरूपसे प्रवृत्त होती हैं उनमेंसे नीचे और ऊपरकी असंख्यातवें भागप्रमाण कृष्टियोंको छोड़कर मध्यम कृष्टिरूपसे प्रवृत्त होती हैं। इस प्रकार प्रवृत्त होनेवाले बन्ध और उदयकी अग्र स्थितियाँ प्रत्येक समयमें अनन्तगुणी हीन होकर प्रवृत्त होती हैं। उन मध्यम कृष्टियोंमेंसे प्रथम समयमें उदयमें प्रवेश होनेवाली जो अनन्त मध्यम कृष्टियाँ हैं उनमें जो सबसे उपरिम उत्कृष्ट कृष्टि है वह तीव्र अनुभागवाली है। उससे बँधनेवाली जो उत्कृष्ट कृष्टि है वह अनन्तगुणी हीन है, क्योंकि उदयको प्राप्त होनेवाली उत्कृष्ट कृष्टि है उससे अनन्त कृष्टियाँ नीचे उतरकर इसका अवस्थान देखा जाता है। उससे दूसरे समयमें उदयको प्राप्त होनेवाली उत्कृष्ट कृष्टि अनन्तगुणी हीन है। तथा उससे दूसरे समयमें बँधनेवाली उत्कृष्ट कृष्टि अनन्तगुणी हीन है। इसी प्रकार पूरे कृष्टि वेदककालमें अल्पबहुत्व जानना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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