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________________ अश्वकर्णकरणके प्रथम समयसम्बन्धी प्ररूपणा ३८५ स्पर्धा को प्रथम वर्गणात अपूर्व स्पर्धा कनिकी वर्गणा अनुक्रमतें विशेष अधिक जाननी । बहुरि अपकर्षण कीया द्रव्यविषै जितना द्रव्यकरि अपूर्व स्पर्धा के बने तिनरूप क्षेत्र जोडनेका विधान तौ ह्या अब अवशेष रह्या द्रव्य पूर्व अपूर्व स्पर्धा कनिविषै देना तिसरूप क्षेत्र जोडनेका विधान कहिए है - असंख्यातगुणा अपकर्षण भागहारते ड्योढगुणा प्रमाण लीएं खंड कीए थे तिनविर्षं साधिक एक घाटि अपकर्षण भागहारमात्र खंड ग्रहण कीए पीछे अबशेष जे खंड रहे तिन विषै एक खंड ऐसा || ताक सकल खंड कहिए । ताकी चोडाई विषै असंख्यातगुणा अपकर्षणभागहारतें stoगुणा प्रमाणमात्र खंड ऐसे |_____/ करने सो इतने खंडनिकों विकल खड कहिए । तहां एक विकल खंडकौं अपूर्व स्पर्धकसंबंधी क्षेत्रकी चौडाई विषै क्रमते जोडना अर अवशेष विकल्प खंडनिकों तैसे ही पूर्व स्पर्धकसंबंधी क्षेत्रकी चौडाईविषै अनुक्रम परिपाटी लीएं जोड़ना । या प्रकार जेते अवशेष सकल खंड रहे तिनकों पूर्व अपूर्व स्पर्धक संबंधी क्षेत्रविष अविरोधपने चौडाईविषै जानने । ऐसे जोडें ऐसा पूर्वस् पर्धक क्षेत्र अपूर्वस्पर्धक क्षेत्र क्षेत्र भया । इहां पूर्व स्पर्धककी प्रथम वर्गणाविषं जोड़ें समस्त विकल खंड ते मिलिकरि भी एक सकल खंडप्रमाण न भए, जाते अपकर्षण भागहारमात्र विकल खंडनिकरि हीन हो हैं । ऐसें पूर्व स्पर्धी प्रथम वर्गणाविषै दीया किंचिदून एक सकल खंड है । अर अपूर्व स्पर्धककी अंत वर्गणा विषै पहिले वा पीछे दीए हुए एक घाटि अपकर्षण भागहारमात्र सकल खंड हैं, तातैं अपूर्व स्पर्धककी अंत वर्गणाविषै दीया द्रव्यतें पूर्व स्पर्धककी प्रथम वर्गणाविषै दीया द्रव्य असंख्यातगुणा घटता है । असंख्यातका प्रमाण इहां साधिक अपकर्षण भागहारमात्र जानना । ऐसें पूर्वोक्त कथनकौं क्ष ेत्ररूप स्थापि प्रगट कीया ||४७० || Jain Education International विशेष - श्री जयधवलाजी में प्रकृत विषयको इस प्रकार स्पष्ट किया है - अपूर्ण और पूर्व स्पर्धकोंकी वर्गणाओंमें अपकर्षित द्रव्यका निक्षेप किस विधिसे लेकर समूचे द्रव्यकी एक गोपुच्छाकार रचना हो जाती है इसका निर्देश हम ४६९ गाथाको टीकाके अन्तमें ही कर आये हैं । यहाँ सर्व प्रथम यह देखना है कि पूर्व स्पर्धकोंकी आदि वर्गणामें जो द्रव्य प्राप्त होता है वह निक्षिप्तहोने वाले द्रव्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कैसे होता है । आगे इसपर विचार करते हैं। यथाअपूर्व स्पर्धकों की अन्तिम वर्गणामें प्राप्त द्रव्य पूर्व स्पर्धककी आदि वर्गणासे एक वर्गणा विशेष मात्र अधिक होता है । साथ ही पूर्वं स्पर्धककी आदि वर्गणामें प्राप्त हुआ द्रव्य वहाँ पूर्वके ४९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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