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________________ क्षपणासार गुणा हीन होता है । इस क्रमसे सात नोकषायोंके संक्रामकके अन्तिम स्थितिबन्धके प्राप्त होने तक जानना चाहिये। पडिसमयं असुहाणं रसबंधुदया अणंतगुणहीणा । बंधो वि य उदयादो तदणंतरसमय उदयो थ ।।४५२।। प्रतिसमयमशुभानां रसबन्धोदयौ अनन्तगुणहीनौ । बन्धोपि च उदयात् तदनन्तरसमय उदयोऽथ ॥४५२॥ स० चं०-अशुभ प्रकृतिनिका अनुभागबन्ध अर अनुभागका उदय सो समय समय प्रति अनन्तगुणा घटता हो है। प्रथम समयतें दूसरे समय दूसरा समयतै तीसरे समय ऐसै क्रमत अनुभागका बंध अर उदय अनन्तगुणा घटता इहां जानना। बहरि पूर्व समयसंबंधी उदयतें उत्तर समयका बंध भी अर अनन्तरवर्ती समयका उदय हो है सो अनंतगणा घटता अनुभागरू जानना ॥४५२॥ बंधेण होदि उदओ अहियो उदएण संकमो अहियो। गुणसेढि अणंतगुणा बोधवा होदि अणुभागे ॥४५३।। बन्धेन भवति उदयोऽधिक उदयेन संक्रमोऽधिकः । गुणश्रेणिरनन्तगुणा बोद्धव्या भवति अनुभागे ॥४५३॥ ___ स० चं०-बंधकरि तो उदय अधिक कहिए है अर उदयकरि संक्रम अधिक है ऐसे अनुभाग अनन्तगुणा गुणश्रेणी कहिए गुणकारकी पंक्ति जाननी । भावार्थ-विवक्षित एक समय विर्षे अनुभागके बंधः अनन्तगुणा अनुभागका तौ उदय है अर तातै अनंतगुणा अनुभागका संक्रम हो है ।।४५३॥ विशेष-यह अनुभागसम्बन्धी बन्ध, उदय और संक्रमविषयक अल्पबहुत्वको सूचित करने वाली गाथा है। नियम यह है कि प्रत्येक समयमें घातिकर्मो का जितना अनुभागबन्ध होता है उससे उसी समय उन कर्मोका अनुभागोदय अनन्तगुणा होता है, क्योंकि अनुभागोदयमें प्राचीन सत्तामें स्थित कर्मों का अनुभाग विवक्षित है। यद्यपि अशुभ कर्मोंके अनुभागकी प्रति समय अनन्तगुणी हानि होती जाती है, फिर भी वह प्रत्येक समयमें प्रत्यग्रबन्धसे अनन्तगुणा होता है। तथा प्रत्येक समयके अनुभागोदयसे अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा होता है, क्योंकि अनुभागसत्त्व प्रति समय अनन्तगुणा हीन होकर उदयको प्राप्त होता है, जबकि प्राचीन सत्त्व तदवस्थ रहकर ही पर प्रकृतिरूपसे संक्रमको प्राप्त होता है । घातिकर्मो की अपेक्षा यह अल्पबहुत्त्व कहा गया है, इसी प्रकार अघातिकर्मों के विषय में जानकर व्याख्यान करना चाहिये । गुणसेढि अणंतगुणेणणाए वेदगो दु अणुभागे । गणणादिकंतसेढी पदेसअग्गेण बोधव्वा ॥४५४॥ १. क० सु० १४३, पृ० ७६९ । २. क० सु० गा० १४६, पृ० ७७० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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