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________________ क्षपणाके लिये सात करणोंका निर्देश सप्तकरणानि अंतरकृतप्रथमे तानि मोहनीयस्य । एकस्थानिकबंधोदयौ तस्यैव च संख्यवर्षस्थितिबंधः ॥४३६ ॥ तस्यानुपू विसंक्रमं लोभस्यासंक्रमं च षंढस्य | आयुक्तकरणसंक्रमं षडावल्यतीतेषूदीरणता ॥४३७॥ स० चं० - अंतर जाने कीया ऐसा अंतरकृत जीव तार्के प्रथम समयविषै सात करणनिका प्रारम्भ भया । ते कहिए है मोहनीयका बंध उदय हैं सो दारुपना छोडि केवल लतारूप एक स्थानगत भए ए दोय करण, बहुरि तीस ही मोहनीयका स्थितिबन्ध पल्यका असंख्यातवां भाग प्रमाणत घटि संख्यात वर्षमात्र भया. एक यहु करण, बहुरि मोह प्रकृतिनिका पूर्वं जहाँ तहाँ स्वजातीय प्रकृतिनिविषै संक्रमण होता था अब आगे कहिए है तैसे आनुपूर्वी संक्रमण होइ अन्यथा न होइ एक यहु करण, बहुरि पूर्वं लोभका अन्य प्रकृतिनिविषे संक्रमण होता था अब न होइ एक यहु करण, बहुरि नपुंसक वेदका आयुक्तकरण संक्रमण भया याकौं अन्य प्रकृतिरूप परिणमाइ नाश करनेका उद्यमी या एक यहु करण, बहुरि पूर्वे कर्मबन्ध पीछें आवली ब्यतीत भए ही उदीरणा होती थी अब छह आवली व्यतीत भए पीछें ही उदीरणा होइ यहु एक करण, इन सात करणनिका अंतर करने के अनंतर समयविषै युगपत् प्रारम्भ भया ||४३६-४३७॥ संहदि पुरिसवेदे इत्थीवेदं णउंसयं चैव । सत्त`व णोकसाए णियमा कोहम्हि संहदि || ४३८।। कोहं च छुहदि माणे माणं मायाए नियमसा छुहदि । मायं च छुहदि लोहे पडिलोमो संकमो णत्थि || ४३९॥ संक्रामति पुरुषवेदे स्त्रीवेदं नपुंसकं चैव । सप्तैव नोकषायान् नियमात् क्रोधे संक्रामति ॥ ४३८ || Jain Education International क्रोधश्च क्रामति माने मानो मायायां नियमेन संक्रामति । माया च क्रामति लोभे प्रतिलोमः संक्रमो नास्ति ॥ ४३९ ॥ ३५९ स० चं० - स्त्रीवेद अर नपुंसकवेदका द्रव्य तौ पुरुषवेदविषै संक्रमण करे है । पुरुषवेद छह हास्यादि ऐसें सात नोकषायनिका द्रव्य संज्वलन क्रोधविषै संक्रमण करे है । क्रोधका द्रव्य मानविषै संक्रमण करै है | मानका द्रव्य मायाविषै संक्रमण करै है । मायाका द्रव्य लोभविषै संक्रमण करे है ऐसें संक्रमणकरि अन्यरूप परिणमि आप नाशकों प्राप्त हो है यहु आनुपूर्वी संक्रमण यस एगट्टाणिया बंधोदया, जाणि कम्माणि बज्झति तेसि छसु आyaatiकमो, लोहसं जलणस्स असंकमो एदाणि सत्त करणाणि १. क० गा० १३८ । २. क० गा० १३९ । आवलियासु गदासु उदीरणा, मोहणीयस्स अंतरद्समयकदे आरद्धाणि । क० चु० पृ० ७५३ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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