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________________ ३५२ क्षपणासार बलतैं वीसीयनिके नीचें अति अप्रशस्त तीन घातिया कर्मनिका असंख्यातगुणा घटता स्थितिबंध हो है ।। ४२५ ।। तक्काले वेयणियं णामागोदाउ साहियं होदि । इदि मोहतीस वीयिवेयणियाणं कमो बंधे ||४२६|| तत्काले वेदनीयं नामगोत्रात् साधिकं भवति । इति मोहतीसियवसिय वेदनीयानां क्रमो बंधे || ४२६ ॥ स० चं० - तिस कालविषै वेदनीयका स्थितिबंध नाम गोत्रके स्थितिबंध तैं साधिक है । ताका आधा प्रमाणकरि अधिक हो है, जाते वीसीयनिका स्थितिबंधते तोसोयनिका स्थितिबंध saढ गुणा त्रैराशिक करि सिद्ध हो है । ऐसें मोह तीसीय वीसीय वेदनीयका क्रमतें बंध भया सोई क्रमकरण जानना । नाम गोत्रतैं वेदनीयका ड्योढा स्थितिबंधरूप क्रम लीएं अल्पबहुत्व होना सोई क्रमकरण कहिए है ।। ४२६ || आगैं स्थितिसत्वापसरण कहिहै है बंधे मोहादिकमे संजादे तेत्तियेहिं बंधेहि । ठिदिसंतमसण्णिसमं मोहादिकमं तहा संते ||४२७॥ Jain Education International बंधे मोहादिक्रमे संजाते तावद्भिर्बंधैः । स्थिति सत्वमसंज्ञिसमं मोहादिक्रमं तथा सत्वे ॥ ४२७ ॥ सं० चं -- बहुरि मोहादिका क्रम लीए जो क्रमकरणरूप बंध भया तातं परें इस ही क्रम ली तितने ही संख्यात हजार स्थितिबन्ध भएँ असंज्ञी पंचेंद्री समान स्थितिसत्त्व हो है । तात पर जैसे मोहादिकका क्रमकरण पर्यंत स्थितिबंधका व्याख्यान कीया तैसे ही स्थिति सत्त्वका होना अनुक्रमतें जानना । तहाँ पल्य स्थिति पर्यंत पल्यका संख्यातवाँ भागमात्र तातै दूरापकृष्टि पर्यंत पल्यका संख्यात बहुभागमात्र तातै संख्यात हजार वर्ष स्थितिपर्यंत पल्यका असंख्यात बहुभागमात्र आयाम लीए जे स्थितिबन्धापसरण तिनकरि स्थितिबंधका घटना कहा था तैसैं इहाँ तितने आयाम लए स्थितिकांडकनिकरि स्थितिसत्वका घटना हो है । बहुरि तहाँ संख्यात हजार स्थितिबंधका व्यतीत होना कहया तैसें इहाँ भी कहिए वा तहाँ तितने स्थितिकांडकनिका व्यतीत होना कहिए, जातैं स्थितिबंधापसरणका अर स्थितिकांडकोत्करणका काल समान है । बहुरि तहाँ स्थितिबंध जहाँ कहया था इहाँ स्थितिसत्व तहाँ कहना । बहुरि अल्पबहुत्त्व त्रैराशिक आदि विशेष बंधा पसरणवत् ही इहाँ जानने । सो स्थितिसत्त्वका क्रम कहिए है प्रत्येक संख्यात हजार कांडक गए क्रमते असंज्ञी पंचेंद्रो चौंद्री तेंदी केंद्री एकेंद्रीनिक स्थितिबंधके समान कर्मनिका स्थितिसत्व हजार सौ पचास पचीस एक सागर प्रमाण हो है । बहुरि १. तदो अण्णो द्विदिबंधो एक्कसराहेण मोहणीयस्स ठिदिबंधो थोवो, तिन्हं, घादिकम्माणं ठिदिबंधो असंखेज्जगुणो, णामा-गोदाणं ठिदिबंधो असंखेज्जगुणो, वेदणीयस्स ठिदिबंधो विसेसाहिओ । क० चु० पृ० ७४८ । २. एण कमेण संखेज्जाणि ठिदिबंधसहस्साणि जादाणि । तदो ठिदिसंतकम्ममसणिठिदिबंधेण समं जादं । क० चु० पृ० ७४८ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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