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________________ ३५० क्षेपणासार होनेपर जब नाम-गोत्रका पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितिबन्ध प्राप्त होता है तब शेष कर्मो का पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिबन्ध होता है। उस समय यह अल्पबहुत्व प्राप्त होता है--नाम-गोत्रका सबसे थोड़ा स्थितिबन्ध होता है, उससे तीसिय चार कर्मो का असंख्यातगुणा स्थितिबन्ध होता है, उससे मोहनीयका संख्यातगुणा स्थितिबन्ध होता है । उसके संख्यात हजार स्थितिबन्ध जानेपर तीन घातिकर्मो और वेदनीयका पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितिबन्ध हो जाता है। उस समय यह अल्पबहुत्व होता है--नाम-गोत्रका सबसे स्तोक स्थितिबन्ध होता है, उससे चार कर्मोका असंख्यातगुणा स्थितिबन्ध होता है, उससे मोहनीयका असंख्यातगुण। स्थितिबन्ध होता है। उसके बाद संख्यात हजार स्थितिबन्ध जानेपर मोहनीयका स्थितिबन्ध भी पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हो जाता है । उस समय सभी कर्मो का पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितिबन्ध हो जाता है । इस प्रकार इस गाथामें उक्त अर्थ गर्भित है ऐसा यहाँ समझना चाहिये । उदधिसहस्सपुधत्तं अब्भंतरदो दु सदसहस्सस्स । तक्काले ठिदिसंतो आउगवज्जाण कम्माणं' ।।४२१।। उदधिसहस्रपृथक्त्वं अभ्यंतरतस्तु शतसहस्रस्य । तत्काले स्थितिसत्व आयुजितानां कर्मणाम् ॥४२१॥ स० चं-तिस मोहनीयका पल्यका असंख्यातवां भागमात्र स्थितिबंध होनेके कालविर्ष आयु विना अन्य कर्मनिका स्थितिसत्त्व पृथक्त्व हजार सागर प्रमाण हो है सो पृथक्त्व हजार शब्दकरि इहां लक्षके माही यथासम्भव प्रमाण जानना। पूर्व पृथक्त्व लक्ष सागरका स्थितिसत्व था सो कांडकघातनिकरि इहां इतना रहया है ।। ४२१ ।। मोहपल्लासंखडिदिबंधसहस्सगेसु तीदेसु । मोहो तीसिय हेट्ठा असंखगुणहीणयं होदि ॥४२२।। मोहगपल्यासंख्यस्थितिबंधसहस्रकेष्वतीतेषु। मोहः तोसियं अधस्तना असंख्यगुणहीनकं भवति ॥४२२॥ स० चं-मोहका पल्यके असंख्यातवें भागमात्र स्थितिबंध भया तिस कालविषै नाम गोत्र का स्तोक तातें तीसीयनिका असंख्यातगुणा तातै मोहका असंख्यातगुणा स्थितिबंध हो है । बहुरि ऐसा अल्पबहुत्व लीएं संख्यात हजार स्थितिबंध भएं नाम गोत्रका स्तोक तातें मोहका असंख्यातगुणा तातें तीसीयनिका असंख्यातगुणा ऐसे अन्य प्रकार स्थितिबंध हो है । इहां विशुद्धताके निमित्ततें तीसीयनिके नीचें अति अप्रशस्त जो मोह ताका स्थितिबंध असंख्यातगुणा घटता भया ।।४२२।। १. ताधे ठिदिसंतकम्मं सागरोवसहस्सपत्रमंतोसदसहस्सस्स । क० चु० ५० ७४७ । २. तदो जम्हि अण्णो ठिदिबंधो तम्हि एक्कसराहेण णामा-गोदाणं ठिदिबंधो थोवो, मोहणीयस्स ठिदिबंधो असंखेज्जगुणो, चउण्हं कम्माणं ठिदिबंधो तुल्लो असंखेज्जगुणो । क० चु० पृ० ७४७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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