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________________ २४० लब्धिसार पूर्वस्पर्धकनिक्षेपसंबन्धीति पृथक् संस्याप्य तदेकभागद्रव्यमिदं व १२a गृहीत्वा, अत्र किंचिदद्रव्यं प्रथम ओ प समयकृतजघन्यकृष्टेरधोऽनन्तगुणहीनशक्तिकापूर्वकृष्टिरूपेण निक्षिपति अवशिष्टं च द्रव्यं प्रथमसमयकृतपूर्वकृष्टिशक्तिसमानशक्तिककृष्टिरूपेण निक्षिपति ॥२८५।। द्वितीयादि समयोंमें निक्षपणका निर्देश स० चं-कृष्टिकरण कालका द्वितीय समयतें लगाय अन्त समय पर्यन्त पूर्व समयविर्षे जितना द्रव्य अपकर्षण कीया तातें असंख्यातगुणा द्रव्यकौं संज्वलन लोभका पूर्व स्पर्धकरूप सर्व सत्त्व द्रव्यतै ग्रहिकरि अपूर्व करै है सो पूर्व समयनिवि भई ते पूर्व कृष्टि कहिए। विवक्षित समयविष नवीन कृष्टि भई ते अपूर्व कृष्टि कहिए। सो पूर्व पूर्व समयविर्ष कीनि कृष्टिनिका प्रमाणतें उत्तर उत्तर समयविष करी कृष्टिनिका प्रमाण क्रम” असंख्यात गुणा घटता है। अर अनुभाग अनन्तगणा घटता है। तहां कृष्टिकरण कालका दूसरा समयनिविषै जो प्रथम समयविषै जो द्रव्य अपकर्षण कीया था तातें असंख्यातगुणा द्रव्यकौं संज्वलन लोभका सर्व सत्त्व द्रव्यतै अपकर्षण करि ताकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग देइ तहां बहुभाग तौ पूर्व स्पर्धकनिविर्षे निक्षेपण करने । अवशेष एक भागविणे कितना एक द्रव्यकौं प्रथम समयविष करी जो जघन्य कृष्टि ताके नीचे अनन्तगुणा घटता अनुभाग लोए अपूर्वकृष्टिनिरूप परिणमावै है । अवशेष द्रव्यकौं प्रथम समयवि कीनि कष्टि तिनिरूप परिणमावै है ।। २८५ ॥ अथ द्विदीयसमयापकृष्टिद्रव्यस्य चतुर्द्रव्यविभागादिप्रदर्शनार्थ गाथाद्वयमाह हेट्ठासीसे उभयगदव्वविसेसे य हेट्ठकिट्टिम्मि । मज्झिमखंडे दव्वं विभज्ज विदियादिसमयेसु ।।२८६।। अधस्तनशीर्षे उभयगद्रव्यविशेषे च अधस्तनकृष्टौ। मध्यमखंडे द्रव्यं विभज्य द्वितीयादिसमयेषु ॥२८६॥ सं० टी०-कृष्टिकरणकालस्य द्वितीयसमये अपकृष्ट कृष्टिद्रव्यं अधस्तनशीर्षविशेषेषु उभयद्रव्यविशेषेष्वधस्तनकृष्टिषु मध्यमखंडेषु चतुर्धा विभज्य निक्षिपति । तद्यथा प्रथमसमयादपकृष्टकृष्टिद्रव्यविशेषोऽयं व १२ १ ० इयमेवादि चोत्तरं च कृत्वा रूपोन ओ प ४ १६ - ४ ख ख२ प्रथमसमयकृष्टयायाम गच्छं कृल्वा पदमेगेण विहीणमित्याबिना संकलनसूत्रेणानीतं चयधनमिदं 10 व १२ ४४ एतदधस्तनशीर्षविशेषेषु निक्षिप्यमाणं द्वितीयसमयापकृष्टद्रव्याद् गृहीत्बा संस्थाप्यं । ओ प ४१६ -४ ख २ ख ख ख२ १. विदियसमए जहणियाए किट्टीए पदेसग्गमसंखेज्जगुणं । विदिए विसेसहीणं । एवं जाव ओधुक्कस्सियाए वि विसेसहीणं । जहा विदियसमए तहा सेसेसु समएसु । वही पृ० ३1२-३१४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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