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________________ लब्धिसार सं० चं०-अष्टवर्ष स्थिति करनेके समय” पहिले समय विर्षे अनन्तरवर्ती पूर्व समयविर्षे मिश्रमोहनी अर सम्यक्त्व मोहनीकी द्विचरम फालिका पतन हो है। तिस समयवि गुणसंक्रमकालका प्रथम समयतें लगाय असंख्यात गुणा क्रम लीएं गुणसंक्रमण द्रव्य होतें जो सम्यक्त्व मोहनीका सत्व द्रव्य पाइए है सो 'दिवड्डगुणहाणिभाजिदे पढमा' इत्यादि विधान करि तहां स्थितिविर्षे सम्भवती जो नानागुणंहानि तिनके निषेकनिविर्षे पाइए है। तिस समयविर्षे जो तिस द्रव्यकौं अपकर्षण भागहारका भाग देइ एक भागमात्र द्रव्य अपकर्षण कीया ताकौं पल्यका तवां भागका भाग देव बहभाग तौ उपरितन स्थितिविर्षे निक्षेपण करिए है तहां जिसका द्रव्य अपकर्षण कीया तिस निषेकका द्रव्यकौं तिस निषेकके नीचे अतिस्थापनावली छोडि 'दिवड गुणहाणिभाजिदे पढमा' इत्यादि विधानकरि देना। बहुरि अवशेष एक भागकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग देइ तहां बहुभाग गुणश्रेणि आयामविर्षे देना अर एक भाग उदयावलीविष देना। इहां अपकर्षणादि भए पोछ जो विवक्षितविर्षे सत्तारूप पूर्व द्रव्य पाइए सो तौ सत्त्व द्रव्य कहिए। अर अपकर्षणादि कीया हूवा जो नवीन द्रव्य तहां मिलाया सो दीयमान द्रव्य काहिए। इन दोऊनिकौं मिलै जो देखनेमैं आया द्रव्यका प्रमाण सो दृश्यमान द्रव्य कहिए। सो यहां उदयावलीविष तौ दीयमान द्रव्य पूर्व सत्त्व द्रव्यके असंख्यातवें भागमात्र है ताकरि साधिक सत्त्व द्रव्यमात्र दृश्यमान द्रव्य तहां जानना अर गुणश्रेण्यायामविर्षे दीयमान द्रव्य पूर्व सत्त्व द्रव्यते असंख्यातगुणा है । यद्यपि इहां गुणश्रेणिविर्षे दीया द्रव्य सर्व सत्त्वद्रव्यके असंख्यातवें भागमात्र है तथापि निषेक इहां थोरे हैं तात असंख्यातगुणा पाइए है । तिस विष पूर्व सत्त्वद्रव्य साधिक कीएं तहां दृश्यमान द्रव्य होइ अर उपरितन स्थितिविर्षे दीयमान द्रव्य पूर्व सत्त्वद्रव्यके असंख्यातवें भागमात्र है। ताकरि अधिक सत्व द्रव्य कीएं तहाँ दृश्यमान द्रव्य हो है। तहाँ उपरितन स्थितिके जे प्रथमादि निषेक तिनिविष अपकर्षण करि जेता द्रव्य घटाया सो तौ ऋण जानना। बहुरि जो इहाँ निक्षेपण कीया द्रव्य सो धन जानना सो धनविर्षे ऋण घटाइ अवशेषकों पूर्व सत्त्व वि मिलाएं द्वितीयादि निषेक हैं ते प्रथमादि निषेकनितें एक एक चय करि घटता क्रमतें होंइ ऐसे करतें मिश्र सम्यक्त्व मोहनीकी द्विचरम फालिका जाविर्षे पतन होइ तिस गुण संक्रमकालका अन्त समयविौं सम्यक्त्व मोहनीके दृश्य द्रव्यका प्रमाण आवै है। बहुरि ताके अनन्तरवर्ती अष्टवर्ष स्थिति करनेका समय तिसविरे मिश्रमोहनी सम्यक्त्व मोहनीकी अन्त दोय फालिका द्रव्य सो अष्टवर्षके जेते समय तितने सम्यक्त्व मोहनीके निषेकनिका द्रव्य प्रमाणकरि हीन ऐसे किंचिदून व्यर्ध गुणहानिमात्र हैं ताकौं 'मिस्सदुगे' इत्यादि गाथा व्याख्यानविषै जैसै पूर्वं वर्णन काया है तैसें उदयादि अवस्थित गुणश्रोणि आयाम वा उपरितन स्थितिविर्षे द्रव्य देनेका विधान जानना। बहुरि ताके अनन्तरवर्ती जो अष्ट वर्ष स्थिति करनेका द्वितीय समय तिसविर्षे सर्व सम्यक्त्व मोहनीका द्रव्यकों अपकर्षण भागहारका भाग देइ तहाँ एक भाग ग्रहि ताकौं पल्यका असंख्यातवाँ भागका भाग देइ तहाँ एक भाग तौ उदयरूप प्रथम समयतें लगाय अष्टवर्ष करनेके समय जो गुणश्रीणि आयाम था ताका शीर्ष पर्यंत अर एक समय व्यतीत भया सो एक समय उपरितन स्थितिका मिलाएं जो उदयादि अवस्थिति गुणश्रेणि आयाम ताके निषेकनिविर्षे असंख्यातगुणा क्रमकरि निक्षेपण करना। अर अवशेष बहुभागनिका द्रव्यकौं ताके उपरिवर्ती अवशेष रहा जो उपरितन स्थिति ताके निषेकनिविर्षे ‘अद्धाणेण सव्वधणे खंडिदे' इत्यादि विधानतै चय घटता क्रमकरि निक्षेपण करना। बहुरि इस ही समयविर्षे अन्तमुहर्तमात्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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