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________________ २५ पदिक अल्पबहुत्वदंडक अंतिमरसखंडोत्करणकालतस्तु प्रथमो अधिकः । ततः संख्यातगुणः चरमस्थितिखंडहतिकालः ॥९३ ॥ सं० टी०-दर्शनमोहस्य प्रथमस्थितिसमाप्तिसमकालभावि (संपूर्ण भवतीत्यर्थः) शेषकर्मणां गुससंक्रमचरमसमयसमकालभावि यदनुभागकाडकं तदत्यानुभागका डकमित्युच्यते । तस्योत्करणकालोऽतर्मुहूर्तमात्रो वक्ष्यमाणपदेभ्यः सर्वेभ्यः स्तोकः २१।१ पदं १ तस्मादपूर्वकरणप्रथमसमयादारब्धानुभागकांडकोत्करणकालो विशेषाधिकः २ २५ । विशेषप्रमाणं पूर्वकालसंख्यातकभागमानं २ २१। पदे २ । तस्मात् प्रथमानुभागकांडकोत्करण कालात् चरमस्थितिखंडोत्करणकाल: चरमस्थितिबंधकालश्च द्वौ समौ संख्येय ४ गुणो २ २।५ । ४ एक स्थितिकांडकोत्करणकाले संख्यातसहस्रानुभागखंडसंभवात्, पदानि ४ ।। ९३ ॥ अब अनुभागकाण्डकोत्करणकाल आदि पच्चीस पदोंका अल्पबहुत्व बतलाते हैं स० चं०-दर्शनमोहका तौ प्रथम स्थितिका अंतविष संभवता, अन्य कर्मनिका गणसंक्रम कालका अंत समयविौं संभवता, जैसा जो अनुभागकांडक ताके घात करनेका जो अंतर्मुहर्तमात्र काल सो अंतका अनुभागखंडोत्करण काल है सो आगे जे कहिए है तिनित स्तोक है। १ । यात याहीका संख्यातवां भागमात्र विशेषकरि अधिक अपूर्वकरणका प्रथम समयविर्षे जाका आरंभ भया असा अनुभागकांडकोत्करणका काल है । २ । यातै संख्यातगुणा अतका स्थितिकांडकोत्करण काल । ३ । अर स्थितिबंधापसरण काल ए दोऊ परस्पर समान हैं ४ ॥ ९३ ।। विशेष-अन्तिम स्थितिकाण्डकोत्करण काल और अन्तिम स्थितिबन्धकालसे प्रकृतमें मिथ्यात्वकी अपेक्षा उसकी प्रथम स्थितिके समाप्त होते समयके उक्त दोनों को ग्रहण करना चाहिए तथा आयकर्मको छोड़कर ज्ञानावरणादि शेष कर्मोंकी अपेक्षा गुणसंक्रमकालके समाप्त होते समयके उक्त दोनोंको ग्रहण करना चाहिए। ये दोनों प्रथम अनुभागकाण्डकोत्करणके कालसे संख्यातगुणे हैं। तत्तो पढमो अहिओ पूरणगुणसेढिसीसपढमठिदी। संखेण य गुणियकमा उपसमगद्धा विसेसहिया ॥१४॥ ततः प्रथमः अधिकः पूरणगुणश्रेणिशीर्षप्रथमस्थितिः । संख्येन च गुणितक्रमा उपशमकाद्धा विशेषाधिकाः ॥१४॥ १. अंतरकरणद्धा तम्हि चेव टिदिबंधगद्धा च दो वि तुल्लाओ विसे साहियाओ। अपुव्वकरणे दिदिखंडयउक्कीरणद्धा ट्ठिदिबंधगद्धा च दो वि तुल्लाओ विसे साहियाओ। उवसामगो जाव गुणसंकमेण सम्मत्तसम्मामिच्छत्ताणि पूरेदि सो कालो संखेज्जगुणो। पढमसमय-उवसामगस्स गुणसेढिसीसयं संखेज्जगुणं। पढमट्ठिदी संखेज्जगुणा। उवसामगद्धा विसेसहिया। वे आवलियाओ समयूणाओ। क० चू०, जयध० भा० १२, पृ० २८७-२९०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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