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________________ प्रमाणवार्तिकभाष्यस्य कारिकाधपादसूची सर्वज्ञ एव सर्वः स्या २. ३५८. ५० सर्वज्ञता कथं तस्य २. ३०३. ४१ सर्वज्ञताऽन्यथा न स्या २. २६५. ३७ सर्वज्ञत्वे प्रसिद्ध च २. २६८. ३७ सर्वज्ञोऽपि न सेव्यत्वं २. २६७. ३७ सर्वत्र धर्मिग्रहणे ४. २९६. ५६८ सर्वत्र भाविरूपस्य ३.१०.४. ३९८ सर्वत्र साक्षात्करणात् २. ६०४. ११२ सर्वत्रार्थस्य न प्राप्ति ३. ९२८. ३८४ सर्वत्रार्थेन्द्रियाणां ३. ७७५ ३७१ सर्वथा(s)व्यतिरेके च २. २२८. ३३ सर्वथा नेति केनाय ३. १०७७. ४२५ सर्वदा नास्ति सर्वत्र ३. ७८०. ३५३ सर्वनाशे समुत्पन्ने ४. १६४. ५२३ सर्वमान्यनिषेधं तु २. ३७४. ५२ सर्वमेयपरित्यागे ४. ४४०. ५९६ सर्वमेव ततोऽनित्ये ४ २६३. ५४९ सर्वलोकप्रसिद्धथा च ३.८६६. ३८० सर्वलोकविरोधोऽयं ४. १६९. ५२८ सर्ववस्त्वेकमेव स्यात् ४. १६६. .९९ सर्वशक्त्यात्मकं वस्तु २. २८७. ३९ सर्वस्य कर्ता नात्मा चेत् २. २६३. ३७ सर्वस्य चार्थसम्बन्धो २. २१७. २९ सर्वस्य जगतः कर्ती ३. ९९२. ३९७ सर्वस्य जगतः सिद्ध ४. २१८. ५३९ सर्वस्य प्रेरको जात २. २७२. ३८ सर्वस्य हेतोहेतुत्वं ४. ५५९. ६२९ सर्वस्याप्रतिभासः किं १, ५४. ४८० सर्वाकारग्रहे हेतु ३. २८६. २३७ सकारप्रसिद्धौ स्यात् ३. २८४. २३७ सर्वाकारानुमान २. ५९८. १११ सर्वाकारानुमान हि २. ६०२. १११ सर्वागमसमानत्वाद् २. ५७. १० सर्वात्मना हि संस्पर्शः ३. ११२०. ४३८ सर्वा बुद्धिन्निरालम्ब्या ३. ८५३. ३७८ सर्वानालम्बनत्वस्य ३. ८८२. ३८१ सर्वाभावो यथेष्टं वा ३. ८६५. ३८० सर्वाभ्यासस्तु यस्यास्ति २. ४९३. ८३ सर्वार्थदर्शनायातः २. ३३.३३ सर्वार्थदर्शने तस्य २. २३२ ३३ सर्वार्थदर्शिनः सर्व' ३. १०७४. ४२१ सर्वावस्थासमानेऽपि २. ३९६. ५६ सर्वे शब्दाः क्वचिद्देशे ४. १८२. ३१ सर्वेरेवात्मभिः सर्व २. २६४ ३७ सर्वे: पक्षस्य षाधातः ४. २७०. ५५३ सवों मयेव व्यापारः ४. १६. ४.१ स वर्णोऽन्येन रूपेण २. १५१. १९ सविकल्पकमध्यक्ष ३. २१. १७१ सविकल्पकसंवित्ति :: x०८ सविकल्पमध्यक्ष ४. ३१२. ५७० . सविज्ञानस्य विच्छेदः २. १८५. ७९ सवृत्यकाधिकरण २. ७५२. १४३ स सर्वव्यवहारेषु ४. ४५२. ५९७ स स्वतन्त्रचरितो यदि २. ३५३. ४८ सहकारिणमासाद्य ३. २८० २३३ सहकारिणमासाथ ३. ११०९. ४:४ सहकार्यद्वयस्यापि २. ४७८. ७८ सहचारिणां तु पूर्वत्वं ४. ३२. ४७६ । सहचारी तथात्वाच्चें ४, ३१. ४७६ सहभावस्तयोाप्त्या २. १८७. २४ सहभावे द्वयोन स्था ४. ३३. ४७६ स हि दृष्टान्त एवोक्तो . २८६. ५६३ स हि दृष्टान्त एवोक्तो ४. x ५६५ स हेतुर्विपरीतोऽस्माद् ४. ४.१. ६०१ सहोपलम्भनियमो २. ६९०. १२७ सांकर्य पूर्वमस्य ४. ३६०. ५८३ ।। सांवृतं स्मरणायातं ४. ३०६. ५७०। सांवृतेऽस्तु परमेष विभागः २. ५३१. ९२ साकल्यवेद[न] तस्य २. ३६३. ११ सा कृपा तद्वतस्तेन २. ३७७. ५२ साक्षात्करणतस्तत्तु ३. ४४३. ३०५ साक्षात्करणमेवात्र ३. ३५४. २७९ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001569
Book TitlePramanvartik Bhasyasya Karikardhapad Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages84
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Nyay, G000, & G005
File Size2 MB
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