SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना प्रति परिचय-- मुनि सुव्रत स्वामी चरित की कुल दो ताड़पत्रीय प्रतियाँ उपलब्ध हुई है । एक जैसलमेर स्थित पंच भण्डार की और दूसरी पाटण संघ भण्डार की । १. प्रथम प्रति खरतरगच्छीय बड़े उपाश्रय की है जिसे जैसलमेर की सूची में पंच का भण्डार भी कहा गया है। इस भण्डार में इसका क्रमांक ४०६ है। इसके पत्र ३७९ है। इसकी लम्बाई चौड़ाई २९"--२१ है स्थिति श्रेष्ठ है । अन्त में प्रति लिखाने वाले की प्रशस्ति है । वह इस प्रकार है-- “संवत् ११९८ अश्विन बदी १ गुरौ । अद्येह श्रीमदणहिल्लपाटके समस्तराजावलीसमलंकृतमहाराजाधिराजत्रिभुवनगण्डसिद्धचक्रवर्तीश्रीमज्जयसिंहदेवकल्याणविजयराज्ये । तस्मिन् काले प्रवर्तमाने श्री श्री चन्द्राचार्याणामादेशेन उमताप्रामावस्थितेन ल . . . . . . . . . . . .श्री मुनिसुव्रतस्वामीचरितपुस्तकं लिखितम् । २. दूसरी प्रतिपाटण स्थित संघ भण्डार की है। जिसका नम्बर (९५) ७, है । इसके पत्र ४५१ है । इसकी लम्बाई-चौडाई २६--२ है । प्रति के अन्त में ग्रन्थकार की प्रशस्ति है । ग्रन्थ लिखाने वाले की प्रशस्ति नहीं है। अन्त में ग्रन्थ लेखन का संवत् प्रति में नहीं है किन्तु लिपिकार की लेखनशैली एवं अक्षरों के आकार-प्रकार से यह ज्ञात होता है कि यह प्रति तेरहवीं सदी के पूर्वार्द्ध में किसी समय लिखी गई हो । संशोधन इम ग्रन्थ के संशोधन सम्पादन के लिए मैंने जैसलमेर स्थित पंच भण्डार की ताडपत्रीय प्रति का ही उपयोग किया है क्योंकि यह प्रति स्वयं आचार्य श्री चन्द्रसूरि ने वि.सं. ११९८ में उमतागांव में अपने चातुर्मास काल में लिखवाई थी । स्वयं लेखक के उपस्थित रहने के कारण यह प्रति प्रायः शुद्ध एवं सुन्दर है। इसी ताडपत्रीय प्रति की प्रतिलिपि आगम प्रभाकर महान् पुण्यात्मा परम पूज्य स्व० श्री पुण्यविजयजी म. सा. ने किसी लिपिक से करवाई थी। मैंने इसी प्रतिलिपि पर से इस ग्रन्थ का सम्पादन संशोधन किया। सं० ११९८ में महाराजा जयसिंहदेव के शासनकाल में उमतागांव (गुजरात) में स्वयं लेखक श्री चन्द्रसूरि ने चातुर्मास किया था। इस ग्रन्थ के सम्पादन, संशोधन के लिए मैंने संघ भण्डार (वर्तमान में श्री हेमचन्द्राचार्य ज्ञान भण्डार) की प्रति का साद्यन्त अवलोकन किया । मेरे सम्पादन के लिए यह प्रति बड़ी उपयोगी सिद्ध हई । कई अशद्ध स्थानों को शुद्ध करने में इसकी बड़ी सहायता मिली। इस प्रति की प्राप्ति में श्री हेमचन्द्राचार्य ज्ञान भण्डार पाटन के व्यवस्थापकों का पूरा सहयोग मिला । अत: मैं उनका आभारी हूँ। ग्रन्यकार परिचय-- .. प्रस्तुत ग्रन्थ के कर्ता प्रसिद्ध साहित्यकार आचार्य श्री श्रीचन्द्रसूरि भारतीय वाङमय के बहुश्रुत प्रतिभा सम्पन्न विद्वान् थे। उनके द्वारा रचित ग्रन्थों में श्री मनिसुव्रत स्वामी चरित उनके पाण्डित्य एवं सर्वतोमुखी प्रतिभा का पर्याप्त निकप है। उन्होंने इस चरितग्रन्थ में कथा एवं उपकथाओं के माध्यम मे जैन सिद्धान्तों को एवं जैनाचार को सुन्दर एवं सरल पद्धति से समझाया है। उनकी यह रचना उनकी साहित्यिक सेवा का द्योतक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001564
Book TitleMunisuvratasvamicarita
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorRupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy