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एवं मंत्री का आश्चर्य चकित होना-- कला में कौशल्य प्राप्त कर कुमार का वापस लोटना कुमार का वसन्तश्री राजकुमारी के साथ विवाह, पुत्र प्राप्ति कीर्तिवर्म कुमार को राज्यगद्दी पर अधिष्ठित कर श्रीवर्म कुमार राजा की नन्दन मुनि के पास दीक्षा ग्रहण संयम के पश्चात् श्रीवर्म मुनि की कठोर तपस्या एवं तीर्थकर योग्य बीस स्थानों की आराधना, अन्तिम समय में समाधिपूर्वक मृत्यु और स्वर्गगमन
५५७६-७८६२ ७८६३-७८६८
७८६९-७८९९
९. आठवाँ भव
प्राणतकल्प में देवदेवविमान वर्णन श्री वर्मकुमार देव की दिनचर्या एवं जिनपूजनादि कार्य
७९०१-८०५८ ८०५९-८२१७
१०. श्री मुनिसुव्रत स्वामी नौवां भव
हरिवंशोत्पत्ति का वर्णन वत्सदेश की कौशाम्बी नगरी का वर्णन,
८२१८-८२३० सुमुख राजा का वर्णन
८२३१-८२३६ उद्यानपाल द्वारा वसन्तश्री के आगमन की राजा को सूचना
८२३७वमन्तऋतु का वर्णन
८२३८-८२५४ उद्यान में वनमाला के रूप को देखकर सुमख का उस पर मोहित होना
८२५५-८२८२ वनमाला और सुमख का मिलन । वनमाला के वियोग में कुविन्द का पागलपन, वनमाला और सुमख की बिजली के गिरने से मृत्यु
८२८३-८४३३ वनमाला और सूमख की हरिवर्ष में हरि और हरिणी यगल रूप में उत्पति
८८३४-८४६५ कविंद का मरकर किल्विषिक देव बनना
८४६६हरि और हरिणी यगल को वैरवश भारतवर्ष की चंपानगरी के बाहर रखना
८४६७-८८८५ हरि यगल को चंपा का राजा बनाना/हरि से हरिवंश कुल की उत्पत्ति, सुमित्र राजा की हरिवंश ८४८६-८५१७ कूल में उत्पत्ति । भ० मुनिसुव्रत कुशाग्रपुर वर्णन राजा सुमित्र का वर्णन
८५७०-८५८९ पद्मावती रानी का वर्णन
८५९०-८५९४ पद्मावती रानी का १४ स्वप्न दर्शन
८५९५-८६४५ रानी का राजा को स्वप्न कथन
८६४६-८६६४ स्वप्न पाठकों को बलाना और उनसे स्वप्नों का फल सुनना, प्रीतिदान देकर स्वप्न पाठकों को ८४६५-८७३६ विदाई देना चारण मुनि का आकाश से नीचे उतरकर २०वें तीर्थंकर मुनि सुव्रत के गर्भ में आने का सूचन करना ८७३७-८७४८
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