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________________ अनुक्रमणिका १. प्रस्तावना प्रति परिचय ग्रन्थकार परिचय कथावस्तु मुनिसुव्रतस्वामिचरित समीक्षात्मक अध्ययन २. ग्रन्थारम्भ गाथा-- १३-१६ ३९-८८ ४९-७७ १०७-७८९ ७५०-१००८ मंगलाचरण सरस्वती वन्दना ग्रन्थ प्रणयन प्रतिज्ञा सज्जन-दुर्जन-वर्णन श्री मुनिसुव्रत स्वामी के नौ भवों के नाम३. प्रथम-भव-शिवकेतु शिवकेतु का नगर, राजा-राज्ञी माता-पिता का वर्णन शिवकेतु का अध्ययन और उसके द्वारा उद्यान में आचार्य दर्शन और आचार्य से प्रश्नोत्तर शिवकेतु के पूर्व जन्म का वर्णन और शिवकेतु को जाति स्मरण आचार्य से दीक्षा का कारण पूछना और आचार्य द्वारा अपनी आत्म कथा का कहना शिवकेतु की दीक्षा और उसके माता-पिता एवं राजा को आचार्य के द्वारा प्रतिवाव शिवकेतु द्वारा निरवद्य दीक्षा का पालन, समाधिपूर्वक मृत्यु ४. द्वितीय भव कुबेरदत्त शिवकेतृ मनि की सौधर्म कल्प में देव रूप से उत्पत्ति ५. तृतीय भव कुबेरदत्त के नगर, माता, पिता, जन्म कुबेरदत्त नामकरण, शिक्षा एवं युवराज पद की प्राप्ति- युवराज कुवेरदत्त का खम और परबलमिह पर आक्रमण और विजयी बन कर अपने नगर लौट आनाखस राजा के आमन्त्रण पर कुबेरदत्त का जिन महोत्सव में मंगलपुर जानाघोड़े पर बैठकर कुबेरदत्त का वन-परिभ्रमण, वन में मुनि से भेंट, उपदेश श्रवण कुमार ने मुनि से पूछा-कर्म बलवान है या पुरुषाकार ? उत्तर में मनि ने कहा--अपने-अपने स्थान पर दोनों बलवान है । इस पर मुनि ने हर्षपाल और अनुपम्वा देवी का दृष्टान्त सुनाया १०२५-१०३८ १०३९-१०८७ १२६५-१२९० १२९१-१४०५ १४०६-१६७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001564
Book TitleMunisuvratasvamicarita
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorRupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size9 MB
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