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________________ ७२ Jain Education International श्रावकाचार-संग्रह एक दिन ते रुद्रभट्ट रे, चाल्यो तीर्थं सु जात्र । रत्न संचय पुर आवीयो रे, कपिल मिल्यो कुछात्र, साहेलड़ी० ॥२४ कपिल निज घरि आणीयो रे, लोक मांहे कहे मुझ तात । भक्ति विनय भोजन दियो रे, कुशल तणी पूछी बात, साहेलड़ी० ॥२५ सत्यभामा प्रच्छन्नपणें रे, सौवर्ण आपी पूछे जाति । कन्त तणी ते निर्मली रे, सत्यपणें कहो बात, साहेलड़ीं ० ॥२६ रुद्रभट्ट कहे बघु सुणो रे, मुझ दासी तणों पुत्र । शूद्र जाति भणी परिहर्यो रे, भण्यो ते वेद बहु सूत्र, साहेलड़ी० ॥२७ तब भामा भय उपनों रे, मुझ शील होसे भंग । संघनन्दिता राणी तणें रे, शरणि गई मन रंग, साहेलड़ी ० ॥२८ नाम प्रशंसा पासें राखी रे, साधर्मी दीयो सनमान । धरमी वाछल्य करे नहीं रे. ते पापी अज्ञान, साहेलड़ी० ॥ २९ श्रीषेण भूप 'घरे आवीया रे. चारण-युगल गुणधार । विधि - सहित आहार दीया रे, निरन्तराय हुओ आहार, साहेलडी० ॥३० श्रीषेण भूपें दान दियो रे, निज नारी सार्थे दोय । सत्यभामा भावें भावना रे. भावनाए पुण्य होय, साहेलड़ी ० ॥३१ काल मरण पामीयो रे, श्रीषेण भूपते जाणि । उत्कृष्ट भोगभूमि अवतर्यो रे, दर्शावध भोग सुख वाणि, साहेलड़ी० ॥३२ भूपतणी दोय कामिनी रे, सत्यमामा सहित । दान तुण्यें तिहां उपनी रे, भोगभूमि निज हित, साहेलड़ी० ॥३३ पात्र दानें फल श्रीषेण रे, भोगभूमि पाम्यो सुख । दश विध कल्पतरु तणां रे, आंखें मेष नहीं दुक्ख, साहेलड़ी• ॥ ३४ त्रण गाउ नु देह उंची रे. त्रण पल्य तस आय । मरण पामी ते आवीया रे, स्वर्गे देवते थाय, साहेलड़ी ० ||३५ सुर नर सुख ते भोगवी रे, श्रीषेण भूपतिणी वार । पात्र दान फल निर्मली रे, लेइ जन्म ते बार, साहेलड़ी० ॥३६ सोलमो जिन ते उपमो रे, शान्तिनाथ जस नाम । चक्रवत्ति जे पांचमो रे, बारमों देव ते काम, साहेलड़ी० ॥३७ पंच कल्याणक भोगवी रे, गुण छेतालीस धार • कर्म हणी केवल लही रे, पोहचा मोक्ष दुआर, साहेलड़ी• ॥३८ वज्रजंघ दान फले रे, पांमो भोग भूमि सुक्ख । अनुक्रमें आदि जिन हुआ रे, कर्म हणी पाम्यां मोक्ष, साहेलडी० ॥३९ श्रीमती राणी दान दीयो रे, अनुक्रमें श्रेयान्स भूप । आदि जिन दीयो पारणं रे, व्यापो जस गुण रूप साहेलड़ी ० ॥४० एह आदें बहु भवि जन्न रे, पात्रने देई दान | सुर नर सुख ते पामीआ रे, किम कह्यो जाइ ते पार, साहेलड़ी• ॥४१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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