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श्री दौलतराम-कृत क्रियाकोष में गुण-वय-तव-सम-पडिमा, दाणं जलगालणं च अणत्यमियं । दसण णाण चरित्तं किरिया तेवण्ण सावया भणिया ॥ ( पृष्ठ २२४ ) मय-मूढमणायदणं संकाइ वसण्ण भयमईयारं । एहिं चउदालेदे ण संति ते हंति सद्दिट्ठी ॥ (पृष्ठ २६२ ) आद्यं शरीर-संस्कारो द्वितीयं वृष्यसेवनम् । तौर्यत्रिकं तृतीयं स्यात्संसर्गस्तुर्य भण्यते ॥ ( पृष्ठ ३०० योषिद्विषसंकल्प पञ्चमं परिकीर्तितम् । तदङ्गवीक्षणं षष्ठं सत्कारः सप्तमो मतः ।। ( पृष्ठ ३००) पूर्वानुभूत-सभोगः स्मरणं स्यात्तदष्टमम् । नवमे भावनी चिन्ता दशमे वस्तिमोक्षणम् ॥ ( पृष्ठ ३०० ) भोजने षट्रसे पाने, कुंकुमादि-विलेपने । पुष्पताम्बूल-गीतेषु, नृत्यादौ ब्रह्मचर्यके । (पृष्ठ ३३३ ) स्नान-भूषण-वस्त्रादौ, वाहने शयनाशने । सचित्त वस्तु-संख्यादौ, प्रमाणं भज प्रत्यहम् ॥ ( पृष्ठ ३३३ )
पं० दौलतराम जीने भी अपने क्रिया-कोषका आधार संस्कृत क्रिया-कोषको ही बताया है। जैसा कि उनके निम्न पद्यसे स्पष्ट है
'ताते नर-भाषा यह कोनी, सुर-भाषा अनुसार लीनी ।
पंचम काल मांहि सुर-भाषा, विरला समझै जिन-मत साखा ।। इस पद्यमें 'नर-भाषा' से अभिप्राय वर्तमानमें बोली जानेवाली हिन्दी भाषासे है और सुर-भाषासे अभिप्राय देवभाषा संस्कृतसे है।
इस उल्लेखसे यह सिद्ध है कि उनके सम्मुख कोई संस्कृत क्रिया-कोष विद्यमान था।
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