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पदम-कत प्रावकाचार आवरण विधन वेदनी स्थिति ए, सुणे सुन्दरे, सागर कोडाकोडि तेत्रीस । मा० सत्तरि मोहनी वीस नाम गोत्र ए, सुणे सुन्दरे, आयु सागर तेत्रीस ॥४७ अनुभाग उदयरसरूप ए, सुन्दरे, सुख देई प्रकृति प्रशस्त । मा० गुड खांड साकर अमृत समए, सुणे सुन्दरे, फल सुख देई समस्त । मा० ॥४८ अप्रशस्त विपाक वसि ए, सुणे सुन्दरे, जीव लहे असुक्ख । मा० नींव कांजीर, विष हालाहल ए, सुणे सुन्दरे, अशुभकर्मे बहुदुक्ख । मा० ॥४९ असंखप्रदेशी आतमा ए. सणे सन्दरे प्रदेश प्रति कर्म अनन्त । मा परस्पर मिलि रहिए, सुणे सुन्दरे, प्रदेशबन्ध दुरन्त । मा० ॥५० बँधनें बन्ध्यो जिम चोर ए. सूर्ण सुन्दरे, परवसि पामे कष्ट । मा० तिम ए जीव कर्मबन्धी ए, सुणे सुन्दरे, दुःख देखे निकृष्ट । मा० ॥५१ प्रकृति प्रदेश बन्ध विधि ए, सुणे सुन्दरे, योग विशेषी होय । मा० स्थिति अनुभाग कषाय बसें ए, सुणे सुन्दरे, इण परिबन्धनुं जोय । मा० ॥५२ कर्मास्रव जे रुधिइ ए, सुणे सुन्दरे, ते संवर बखाणि । मा० घडनाला जिम रुंधीइ ए, सुणे सुन्दरे, आवे नहीं नव पाणि । मा० ॥५३ नाव छिद्र जिम रुंधीइ ए, सुणे सुन्दरे, आवे न नीर लगार । मा० मण वय काया तिम रुंधीइ ए, सुणे सुन्दरे, न वि होइ कर्म पसार । मा० ॥५४ सूको तुंबू जिम जल तिरे ए, सुणे सुन्दरे, ज्यों नहीं गर्वनो भार । मा० तिम कर्मसहु सोखीइ ए, सुणे सुन्दरे, जीव तिरे संसार । मा० ॥५५ सविपाक अविपाक निर्जरा ए, सुणे सुन्दरे, सहजि सविपाक जोइ । मा० संसारी सहुं प्राणी ते ए, सुणे सुन्दरे, कर्म जाइ बली होइ । मा० ॥५६ यती व्रती ध्यान बली ए, सुणे सुन्दरे, जे करे कर्मनी हाणि । मा० तीव्र तप जे कर्म गलिए, सुणे सुन्दरे, ते अविपाक मन आणि । मा० ॥५७ जिम जिम जीव कर्म निर्जरि ए, सुणे सुन्दरे, तिम तिम ऊर्ध्व स्वभाव । मा० भार विना जिम नीरमाहे ए, सुणे सुन्दरे, ऊंची दीसे नाव । मा० ॥५८ कर्मरुधि संवर हुई ए, सुणे सुन्दरे, कर्मक्षये निर्जरा जोय । मा० संवर निर्जरा मोक्ष हेत ए, सुणे सुन्दरे, काललब्धि भव्ये होय । मा० ॥५९ सर्व कर्मक्षय जे हेतु ए, सुणे सुन्दरे, परिणाम भावे मोक्ष । मा० जीवथी पृथक् कर्म जे कीजिए, सुणे सुन्दरे, ते द्रव्ये सिद्धि सोक्ख । मा० ॥६० शुक्लध्यान अब ध्यायता ए, सुणे सुन्दरे, जे होइ कर्मविनाश । मा० केवलज्ञान तब ऊपजे ए, सुणे सुन्दरे, लोकालोक प्रकाश । मा० ॥६१ अंगघात सह परिहरी ए, सुणे सुन्दरे, जे पामे शाश्वत ठांम | मा० क्षायिक पंच परम भाव ए, सुणे सुन्दरे, ते मोक्ष कहीए उद्दाम । मा० ॥६२ इन्द्र आदि जे भोगवे ए, सुणे सुन्दरे, हुव होइ छे हसे जेह । मा० तेहना सुक्ख थी अनन्तगुणुं ए, सुणे सुन्दरे, एकसमय लहे ते सिद्धगेह । मा०॥६३ तत्त्व सात इमउ लखो ए, सुणे सुन्दरे, निज द्रव्य गुण पर जाय । मा० जिन वाणीमें जिम कह्यो ए, सुणे सुन्दरे, ते तिम निश्चल ध्याय । मा०॥६४
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