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________________ पुव्वं दाणं दाऊण पुवं सेवइ मिच्छा पुईफल-तिदु- आमलय पूयफलेण-तिलोए पेच्छह मोहविणडिओ पोट्टहं लग्गवि पावमइ पोट्टिलियाह मणिमोत्तियह पोत्थय दिण्ण ण मुणिवएहं पंचणमोक्कारपहि पंचमयं गुणठाणं पंचमि उववास विहि पंचमु साव जाणि पंचवि इंदिय पाणा पंचविहं चारितं पंचसु मेरुसु तहा पंचाणुव्वय जो धरइ पंचाणुव्वधारी पंचबरसहियाइ पंचुंबरह णिवित्तिजसु पंचेव अणुब्वयाइ फ फरसिंदिय मा लालि जिय फलमेस्से भोत्तूण फायजण हाइ बत्तीसा अमरदा बागा सुट्टी बलिवत्तिएहि जावारएहि बहुत स-समणिदं जं बहिरब्भन्तरतवसा बहुहावभावविब्भम गाथानुक्रमणिका १८६ रयण ० ६२ वसुनं ० ४४१ रयण ० १३ वसुनं० १२३ सावय० १०६ ११० १५९ वसुनं० ४५७ भावसं १ २५० " वसुनं० ३६२ सावय० १४ लाटी० (उक्तं ) ४.२६ वसुनं० ३२३ ५०८ सावय० ११ स्वामिका० २९ वसुनं ५७ २०५ १० {चारित ३(२२) Jain Education International 21 "1 71 "" सावय० सावय० १२३ वसुनं० ३७८ भावसं० ७७ "" १०३ वसुनं २४९ ४२१ · स्वामिका० २७ "" ० १५९ भावसं ० वसुनं ००४१४ बादरमण-बचिजोगे बारस य बारसीओ बारह अंगंगी जा बालत्तणे वि जीवे बालोऽयं बुड्ढोऽयं बाहत्तर कलसहिया बाहिरगंथविहीणा बीओ भायो हे बुद्धितो विद्धी बंधण भारारोवण बंधित्ता पज्जंक भारि सत्तम भण भत्तीए पिच्छमाणस्स भत्तीए पुज्जमाणो भत्ती तुठ्ठी य खमा भद्दस्स लक्खणं पुण भमई जए जसकित्ती भयविसणमलविवज्जिय भब्वच्छाहणि पावहरि भागी वच्छल्ल-पहावणा भाव अणुव्वाइ भक्खसमा ण हि बाही भुक्खाकयमरणभयं भुं जहा लहं भुंजे पाणिपतम्म भूमहिलाकणयाई भोगहं करहि पमाणु भत्तु अच्छा भोत्तूण मणुयसोक्खं भो भो जिब्भिदिय लुद्ध भोयणदाणं सोक्खं भोयणदाणे दण्णे भोयणबलेण साहू भोयणु मउणें जो करइ भ For Private & Personal Use Only 19 "1 31 11 """ २६३ .. स्वामिका ० ८७ भावसं० २३० वसुनं० ५१२ १८१ 13 स्वामि० ५४ सावय० १५ १५ ५३३ ३७० ३९१ १८५ ३२४ वसुनं० ४१६ स्वामिका० १९ भावसं० १४७ १६ 27 वसुनं० ३४४ रयण० ५ सावय० १९९ वसुनं० ३८७ भावसं० १३९ १६९ १७४ 33 19 रयण० ९९ वसुनं ० ३०३ रयण ० ६८ सावय० ६५ वसुनं० १५९ ५१० ८२ 33 स्वामिका ० ६१ 31 "" ६२ ६३ "9 सावय० १४३ www.jainelibrary.org
SR No.001554
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size13 MB
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