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________________ श्रावकाचार-संग्रह , २४१ m or orm or , . २६२ जहणीरं उच्छुगयं. जइ अच्छहिं संतोसु करि सावय० १३७ जह मज्झिमम्मिं खित्ते भावसं १७७ जइ अद्धवहे कोइवि जह रयणाणं वइरं वसुनं० ३०६ जइ अहिलासु णिवारियउ सावय० ५१ जह रुद्धम्मि पवेसे वसुनं० ४४ जइ एवं ण रएज्जो जह लोहणासणहं स्वामिका० ४० वसुनं० ३०९ जइ अतरम्मि कारणवसेण जह समिलहिं सायरगयहिं सावय० ३ ३६० जइ कोवि उसिणणरए स्वामिका० ४९ जाणित्ता संपत्ती भावसं०४४ जइ खाइयसद्दिट्ठी जाम ण छंडइ गेहं ५१५ जइ गिहत्थु दाणेण विणु सावय० ८७ जायइ अक्खयणिहि वसुनं० ४८४ जइ जिय सुक्खइ अहिलसइ जायइ कुपत्तदाणेण ., २४८ जायइ णिविज्जदाणेण वसुनं० ४८६ जइ देइ तहवि तत्थ वसुनं० १२० जायंति जुयल-जुयला जइ देखेवउ छंडियउ सावय० ३९ जइ पुज्जइ कोवि गरो जासु जणाणि सग्गागमणि भावसं० १०० सावय० १६७ जइ फलइ कहवि दाणं जिणजम्मण-णिक्खमणे वसुनं० ४५२ जइ भणइ कोवि एवं भावसं० ४० जिणभवणइ कारावियई जइ मे होहिहि मरणं वसुनं० १९९ जिणमवण-बिब-पोत्थय धर्मोप० (उक्त) ४,३० जइवि सुजायं बीयं भावसं० ५२ जिणपडिमइं कारावियई सावय० १९२ जत्थ ण कलयलसद्दो स्वामिका० ५२ जिणपयगयकुसुमंजलिहिं जत्थेक्क मरइ जोवो लाटी० (उक्त) १.६ ।। जिणवयण-धम्मचेइय वसुनं० २७५ जय जीव णंद बड्ढाइ स्वामिका० ५५ जरसोय-बा-हि-वेयण भावसं० २४३ जिणसिद्धसूरिपाठय वसुनं० ३८० जलधारा जिणपयगयउ सावय० १८३ जिणहरि लिहियइ सावय० २०१ जलधारा णिक्खेवेण वसुनं० ४८३ जिणु अच्चइ जो अक्खयहि १८५ जल्लोसहि-सव्वोसहि , ३४६ जिणु गुण देइ अचेयणु , २१८ जसकित्ति-पुण्णलाहे रयण० २६ जिण्णुद्धार पइट्ठा रयण० ३१ जसु दंसणु तसुमणुसहं सावय० ५४ जिब्भाच्छेयण णयणाण वसुनं० १६८ जसु पत्तुंत्तमराइयउ , १७१ जिभिदिउ जिय संवरहिं सावय० १२४ जसु हियइ अ सि आ उ सा , २१४ जिय मंतइ सत्तक्खरई २१५ जस्स ण तवो ण चरणं भावसं० १८२ जीवस्सुवयारकरा वसुनं० ३४ जस्स णहु आउसरिसाणि वसुनं० ५२९ जीवादी सद्दहणं लाटी० (उक्त) २१३ जह उक्कस्सं तह मज्झिम , २९० जीवाजीवासवबंध जह उत्तिमम्मि खित्ते , २४० जीवो हु जीवदब्वं वसुनं० २८ जह ऊसरम्मि खित्ते ,, २४२ जूए धणहुँ ण हाणि पर सावय० ३८ जह गिरिणई तलाए भावसं० ४३ जयं खेलंतस्स हु वसुनं० ६० जह जह वड्ढइ लच्छी ,, २१९ जूयं मज्जं मंसं जह णावा णिच्छिद्दा , १६० जे केइवि उवएसा वसुनं० ५०० जिणवयणेयग्गमणो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001554
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size13 MB
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