________________
कप्पूर - कुंकुमायरु कप्पूरतेल्लपयलिय कम्मि अपत्तविसेसे कम्मु ण खेत्तिय सेव करचरण पिट्ठसिरसाणं करणं अघापवत्तं
कलसचउक्कं ठाविय कस्स थिरा इह लच्छी कहमवि णिस्सरिकणं कवि तो जइ छुट्टो कहि भोयण सहुं भिट्टडी कहियाणि दिट्ठिवाए कंदपकिब्भिसासुर काई बहुत्तई जंपिय
काई बहुत्त संपयइं काउस्सग्गम्मि ठिओ काळण अट्ठ एयंतराणि काऊण तवं घोरं
काळण पमत्तेयरपरित
काऊणाणंतचउट्ट्याइ
काळज्जवणं पुण कामका परिचत्तयइ
कायकिलेसुवासं
कायाणुरूवमद्दण कारावर्गदपडिमा
कारुय किराय चंडाल
कालस्स य अणुरूगं कालायरु णह चंदह किकवाय गिद्ध वायस कि किचिवि वेयमयं कि कि देइ ण धम्मतरु कि केण विदिट्ठो हं किच्चा काउस्सग्गं किच्चा देसपमाणं
कित्ती जस्सिं सुभा किरिम्म भुट्ठाणं
Jain Education International
४२७
""
भावसं० १२६
वसुनं० २४३
सावय० ९७
३३८
५१८
"
भावसं० ८९
२११
21
वसुनं० १७८
१५६
सावय० ९४
भावसं ०
३४
वसुनं० १९४
सावय० १०४
८९
० २७६
३७३
५११
५१७
४५६
३६४
वसुनं०
""
श्रावकाचार-संग्रह
"
"
3.
सावय०
४५
रयण ० ७५
वसुनं० ३२९
३८६
33
८८
भावसं० १६४
वसुनं० ४३८
१६६
""
भावसं० १५६
सावय० ९८
वसुनं० १०३ भावसं १३० स्वामिका० ५६ वसुनं० प्र० ५४१
किवणेण संचियघणं कि करमि कत्थ वच्चमि किचुवसमेण पावस्स
कि जंपिएण बहुणा
कि जं सो गियंती
कि दाणं मे दिण्णं किंबहुना उत्ते
किं सुमिणदंसणमिणं
कुच्छ्रियं जस्सणं कुच्छियपत्ते किचिवि कुत्युंभरि दलमेत्ते
कुसुमेहिं कुसे सयवयणु कूडतुलामाणाइयहि सीहमुहा केई पुण गयतुरया पुण दिवल
ई
केई समवसरणगया
कोहं इह कस्साओ
कोहं माणे माणं मायाए
खयकुट्ठमूल सूलो खीरुवहि सलिलधारा
खुट्टइ भोउ ण त महइ
खुद्द सो खेत्तविसेसे काले
खंचहि गुरुवयणंकुसहि कंघेण वहति
गच्छइ विसुज्झमाणो गब्भावयार - जन्माहिसेह गरुड सहावई परिणवइ
गय भूय डायणीओ गयहत्यायणासिय वसुनं० ३२८ गहिऊण सिसिरकर
ग
For Private & Personal Use Only
भावसं० २१०
वसुनं० १९७
वसुनं० १९१
३४७
४९३
भावसं० ३५
६८
११२
"
वसुनं० ४९९
भावसं० १६२
"
"
१८४
33
वसुनं० ४८१
४८५
"
सावय० १६२
भावसं० १८९
१९५
१९६
२४६
""
""
11
६७
13
वसुनं० ५२२
रयण • ३४
वसुनं० ४७५
सावय० १८६
रयण० ४१
रयण० १७ १३०
भावसं० २२२
"1
वसुनं० ५२० ४५३
""
सावय० २१७ भावसं० १०९
रयण० ३३
वसुनं० ४२५
www.jainelibrary.org