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भास्कराचार-संग्रह
इत्यनेन विधिना करोति यः कर्म-धर्ममसमिद्धवासितः ।। तस्य सूत्रयति मुक्तिकामिनी कण्ठकन्दलहठग्रहक्रियाम् ॥४५ इति श्रीकुन्दकुन्दस्वामिविरचिते श्रावकाचारे जन्मचर्यायां
धर्मोत्पत्तिकारणाख्ये दशमोल्लासः ।
इस उपर्युक्त विधिके द्वारा जो सांसारिक वासनाओंसे विमुक्त होकर धर्म-कार्य करता है, उसके मुक्तिरूपी कामिनी कण्ठकन्दलको हठ-पूर्वक ग्रहण करनेकी क्रियाको सूचित करती है, अर्थात् मुक्तिरूपी वधू उसके गलेमें वरमाला डालती है ॥४५॥
इस प्रकार कुन्द-कुन्दस्वामि-विरचित श्रावकाचारमें जन्मचर्याक अन्तर्गत
धर्मोत्पत्तिकारण नामका दशम उल्लास समाप्त हुआ।
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