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श्रावकाचार-संग्रह
पाषाणसञ्चये दिव्यदेवतायतनादिके । स्थानेष्वेतेषु यो दष्टो यमस्तस्मिन् दृढोद्यमः ॥१९२ विषभेदावबुद्धयर्थं ज्ञेयो नागोदयः पुरा । अज्ञातविषभेदः सन्निविषी कुरुते कथम् ॥ १९३ रविवारे द्विजोऽनन्तो नागः पद्मसिरा सितः । वायवीयविषो यामार्धमात्रमुदयी भवेत् ॥ १९४ वासुकी सोमवारे तु क्षत्रिय: शुभविग्रहः । नीलोत्पलाङ्क आग्नेयगरलोऽभ्युदयं ब्रजेत् ॥ १९५ भवत्यभ्युदयी भौमे तक्षको विश्वरक्षकः । आस्ते पार्थिवविषो वैश्यः ( स च ) स्वस्तिकलाञ्छनः ॥१९६ बुधे लब्धोदयः शूद्रः कर्कटो जनसन्निभः । स वारुणविषो रेखात्रितयाञ्चितमूर्तिमान् ॥१९७ गुरुवारोदयी पद्मः स्वर्णवर्णसमद्युतिः । शूद्रो महेन्द्रगरल: पञ्चचन्द्रः सबिन्दुकः ॥ ९८१ शुक्रवारोदितो वैश्यो महापद्मो घनच्छविः । लक्षिताङ्गस्त्रिशूलेन दधानो वारुणं विषम् ॥ १९९ धत्ते शङ्खः शनौ शक्तिमुदेतुमरुणारुणः । क्षत्रियो गरमाग्नेयं विभ्रद्रेखां सितां गले ||२०० राहुः स्यात्कुलिका श्वेतो वायवीयविषो द्विजः । सर्ववारेषु यामार्धं सन्धिस्वस्योदयो मतः ॥२०१ अहर्निशमियं वेला ख्याता विषवती किल । तदादौ विषमज्ञेयं माहेन्द्रं मध्यमं पुनः ॥ २०२ वारुणं पश्चिमे भागे तदाद्यमतिदुःखदम् । कष्टसाध्यं परं साध्यं भवेत्परतरं पुनः ॥ २०३ विषं साध्यमिति ज्ञातमिति चेन्नैव नश्यति । तदा परोऽतो विज्ञेयस्तस्य स्थितिर्भीतिनिश्चयम् ॥ २०४
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मन्दिरादिकमें, इतने स्थानोंमें सर्पके द्वारा जो पुरुष डसा गया हैं, यमराज उसपर दृढ़तासे उद्यम - शील है, ऐसा जानना चाहिए । १९१-१९२॥
विषोंके भेद जाननेके लिए पहिले नागोंका उदय जानना चाहिए। क्योंकि विषोंके भेदों को नहीं जानने वाला गारुड़ी सर्प-दष्ट पुरुषको विष-रहित कैसे कर सकता है ? अर्थात् नहीं कर सकता ॥१९३॥ रविवारके दिन द्विज-वर्णी शिरपर कमल चिह्नवाला श्वेत अनन्त नाग वायवीय विषवाला होता है, वह डसने के अर्धप्रहरमात्र में उदयको प्राप्त हो जाता है || १९४|| सोमवारके दिन क्षत्रिय वर्णवाला, शुभ शरीरी नीलकमल जैसे अंगका धारक और आग्नेय विषका धारक वासुकी सर्प अभ्युदयको प्राप्त होता है, अर्थात् डसने के लिए उद्यत होता है || १९५|| मंगलवारके दिन विश्व-रक्षक, पार्थिव विषवाला, वैश्यवर्णी, स्वस्तिक चिह्नका धारक तक्षक सर्प डसने के लिए अभ्युदयशील होता हैं ॥ १९६ ॥ । बुधवार के दिन शूद्रवर्णवाला, सामान्य जनके सदृश वारुण विषका धारक, तीन रेखाओंसे चिह्नित मूर्तिका धारक कर्कटसर्प उदयको प्राप्त होता है || १९७|| गुरुवार के दिन उदयको प्राप्त होनेवाला सुवर्ण वर्णके समान कान्तिका धारक, शूद्रवर्णी, माहेन्द्र विषवाला, बिन्दु सहित पांच चन्द्र-धारक पद्म सर्प डसनेको उद्यत होता है || १९८ || शुक्रवारके दिन उदित विषवाला, वैश्यवर्णी, मेघ जैसी छविका धारक, त्रिशूल चिह्नसे लक्षित शरीरवाला और अरुण विषका धारण करने वाला महापद्म सर्प डसनेको उद्यत होता है || १९९|| शनिवार के दिन अरुण वर्ण वाला, क्षत्रियवर्णी, गलेमें श्वेत रेखाका धारक आग्नेय विषवाला शंख सर्प काटने की शक्तिके उदयको धारण करता है || २००॥ कुलिक जातीय श्वेत वर्णवाला, वायवीय विषका धारक, द्विजवर्णी राहु सर्प सभी दिनोंमें अर्ध प्रहरमें और दिन-रातकी सन्धिके समय काटनेके लिए विषके उदयवाला माना गया है || २०१|| निश्चयसे दिन-रातकी यह वेला विषवाली प्रसिद्ध है । उसके आदिमें विष अज्ञेय है । किन्तु माहेन्द्र विष मध्यम होता है || २०२ ॥ वारुण विष दिनके अन्तिम भागमें उदयशील होता है, उसका आद्य समय अति दुःखदायी है, उससे परवर्ती भाग कष्ट साध्य है और उससे भी परवर्तीभाग साध्य है || २०३ || यह विष साध्य है, ऐसा ज्ञात हो जावे, फिर भी
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