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अथ चतुर्थोल्लासः
उत्थाय शयनोत्सङ्गाद् वपुः शौचमथाचरेत् । विचिन्त्यायव्ययौ सम्यग्मन्त्रयेदथ मन्त्रिभिः ॥१ ततो वैकालिकं कार्यमिताहारमनुत्सुकम् । घटिकाद्वयशेषेऽह्नि कालौचित्याशनेन तु ॥२
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भानोः करेरसंस्पृष्टमुच्छिष्टं प्रेतसञ्चरात् । सूक्ष्मजीवाकुलं चापि निशिभोज्यं न युज्यते ॥४ शौचमाचर्य मार्तण्डबिम्बार्धस्तमिते सुधीः । धर्मकृत्यैः कुलायातैनिजात्मानं पवित्रयेत् ॥५ न शोषयेन्न कण्डूयेन्न क्रमेदङ्घ्रिमङ्घ्रिणा । न च प्रक्षालयेत् कांस्ये न कुर्यात्स्वामिसम्मुखम् ॥६ सन्ध्यायां श्रहं निद्रां मैथुनं दुष्टगर्भकृत् । पाठं वैकल्यदं रोगप्रदां भुक्ति च नाचरेत् ॥७ अर्केऽर्घास्तमिते यावन्नक्षत्राणि नभस्तले । द्वित्राणि नैव वोक्ष्यन्ते तावत्सायं विदुर्बुधाः ॥८ सूर्योदयात्तिस्तभ्यमतिसायं विचक्षणैः | शयनस्थानपानीयप्रमुखः कार्यमाचरेत् ॥९ बाद्गोऽनीते (?) यामयुग्मे विधेयं यामार्धेषु प्रोक्तमित्थं चतुर्षु । अन्तश्चित्तं चिन्त्यमेतच्च सम्यक् स्थेयः काङ्क्षयेत्क्षुन्नदीभिः ॥१० इति श्री कुन्दकुन्दस्वामिविरचिते श्रावकाचारे दिनचर्यायां चतुर्थोल्लासः ।
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मध्याह्नमें तीसरे पहर विश्रामके पश्चात् शय्याके मध्यसे उठकर शौच आदि शारीरिक शुद्धिको करे । तदनन्तर अपने सलाहकार लोगोंके साथ आय और व्ययका विचार करके भले प्रकारसे परामर्श करे ||१|| तत्पश्चात् वैकालिक अर्थात् चौथे पहरमें करने योग्य कार्य करे । जब दो घड़ी दिन शेष रह जावे, तब उत्सुकता - रहित ऋतुके अनुसार उचित अशन-पानसे परिमित आहार करे ॥२॥ सूर्यकी किरणोंके स्पर्शसे रहित, भूत-प्रेतोंके संचारसे उच्छिष्ट और सूक्ष्म जीवोसे व्याप्त ऐसा रात्रि-भोजन करना योग्य नहीं है ||४|| सायंकाल शौचशुद्धि करके सूर्यके अर्ध अस्तंगत होनेके समय बुद्धिमान् श्रावक कुल-क्रमागत धार्मिक कृत्योंके द्वारा अपनी आत्माको पवित्र करे ||५||
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एक पाद (पैर) से दूसरे पादको न शोधे, न खुजलावे और न संचालन करे । कांसेके पात्र में पादोंको घोवे भी नहीं और न स्वामीका सामना ही करे ||६|| सन्ध्याके समय श्रीद्रोहका कार्य न करे, निद्रा न लेवे, दुष्ट गर्भका कारणभूत मैथुन सेवन न करे, विकलता करनेवाले शास्त्रका पठन-पाठन भी न करे । तथा रोग बढ़ानेवाला भोजन भी न करे ||७|| सूर्यके अर्ध अस्तंगत होनेपर जबतक नभस्तलमें दो-तीन नक्षत्र दिखाई नहीं देते हैं, तब तकके समयको ज्ञानी लोग सायंकाल कहते हैं ||८|| सूर्योदयसे लेकर तिथिके तथ्य ( पन्द्रहवें मुहर्त्तं) तकके समयको विचक्षण पुरुष 'अतिसायंकाल' कहते हैं । उस समय शयन, स्थान और पीने योग्य प्रमुख द्रव्योंसे कार्य करना चाहिए ॥९॥ सूर्योदयसे लेकर पहलेके दो पहरोंमें करने योग्य कार्योंको, तत्पश्चात् आघे पहरमें करने योग्य कार्यको पुनः अन्तिम पहरमें करने योग्य कार्योंको कहा। इस प्रकार चारों ही पहरोंमें अपने करने योग्य कार्योंका विचार करना चाहिए। तथा आत्म-हितके इच्छुक पुरुष उक्त प्रकारसे अपनी दिनचर्याको सन्तुलित कर आत्म-चिन्तन करें, जैसे कि छोटी-छोटी नदियाँ समुद्रमें मिल कर स्थायित्वका अनुभव करती हैं ॥१०॥
इति श्री कुन्दकुन्दस्वामिविरचिते श्रावकाचारे दिनचर्यायां चतुर्योल्लासः ॥३॥
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