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क्रमांक ४२७ की हस्तलिखित प्रतिसे किया गया है जो कि सं० १८२८ की लिखी है। इसका आकार ११४५॥ इञ्च है। पत्र सं० १८० है। प्रति पृष्ठ पंक्ति संख्या ९ और पंक्ति अक्षर संख्या २९-३० है । ब्यावर भवनमें इसकी ६ प्रतियाँ हैं। पर उनमें यह सबसे अधिक प्राचीन और शुद्ध है।
१३. गुणभूषणश्रावकाचार—यद्यपि यह श्रावकाचार जैनमित्रके १८ वें वर्षके उपहारमें ६० पन्नालालजीके अनुवादके साथ वी० नि० २४५१ में प्रकाशित हुआ है पर उसके अन्तमें जो मूल भाग छपा है, वह बहुत अशुद्ध था और अनेक श्लोक अधूरे थे। उन्हें ब्यावर-भवनकी हस्तलिखित प्रतिपरसे शुद्ध करके प्रेस कापी तैयार की गई। भवनकी प्रतिका क्रमांक १६३ है। पत्र सं० २१ है। आकार ११४४। इञ्च है। प्रति पृष्ठ पंक्ति सं० ७ है और प्रति पंक्ति अक्षर-संख्या ३०-३१ है यद्यपि इस प्रतिपर लेखनकाल नहीं दिया है, पर कागज स्याही और लिखावटसे ३०० वर्ष प्राचीन अवश्य है और बहुत शुद्ध है।
१४. धर्मोपदेश पोयषवर्ष श्रावकाचार—यह मूल या अर्थके साथ पहिले कभी मुद्रित हुआ है यह मुझे ज्ञात नहीं। इसकी प्रेस कापी ब्यावर-भवनकी हस्तलिखित प्रतिसे की गई है जो सं० १७२८ की लिखी हुई है। इसकी पत्र सं० २६ है। आकार ११४४। इंच है। प्रति पृष्ठ पंक्ति सं० ९ है और प्रति पंक्ति अक्षर-संख्या ३२-३३ है। इसका अनुवाद मेरा ही किया हुआ है।
१५. लाटोसंहिता—यह मूल माणिकचन्द्र ग्रन्थमालासे और पं० लालारामजीके हिन्दी अनुवादके साथ भारतीय जैन सिद्धान्तप्रकाशिनी संस्था कलकत्तासे वी०नि० २४६४ में प्रकाशित है । इसके आधारपर ही प्रेसकापी तैयार की गई है । पर मूलका संशोधन ब्यावर-भवनकी हस्तलिखित प्रतिसे किया गया है। इसपर लेखनकाल नहीं दिया है फिर भी यह लगभग २०० वर्ष पुरानी अवश्य है। इसके सम्यक्त्व प्रकरणवाले श्लोकोंका अनुवाद पं० मक्खनलालजी, पं० देवकीनन्दनजी और पं० फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्रीके द्वारा सम्पादित पंचाध्यायोके आधारपर किया गया है । तथा शेष भागका अनुवाद विस्तृत अंशको छोड़कर पं० लालारामजीके अनुवादपरसे ही किया गया है । ब्यावर-भवनकी हस्तलिखित मूल प्रतिका क्रमांक १९१ है। आकार १०x ४॥ इंच है। पत्र सं० ८८ है। प्रति पृष्ठ पंक्ति सं०९ है और प्रति पंक्ति अक्षर-संख्या ३३-३४ है ।
यहां यह ज्ञातव्य है कि पूर्व मुद्रित प्रतिमेंसे प्रथम सर्गको छोड़ दिया गया है क्योंकि वह कथामुख ही है । धर्मका वर्णन दुसरे सर्गसे प्रारंभ होता है। अतः वहींसे यह प्रस्तुत संकलनमें संगृहीत है। प्रशस्ति अधिक बड़ी होनेसे परिशिष्टमें दी गई है।
१६. उमास्वामि श्रावकाचार-यह श्री शान्ति धर्म दि० जैन ग्रन्थमाला उदयपुरसे वीर नि० २४६५ में पं० हलायुधके हिन्दी अनुवादके साथ प्रकाशित हुआ है। इसके मूल भागका संशोधन ब्यावर-भवनकी हस्तलिखित प्रतिसे किया गया है जिसका क्रमांक १२९ है। पत्र सं० ७९ है । आकार १२ x ७ इंच है । प्रति पृष्ठ पंक्ति-संख्या १३ और प्रति पंक्ति अक्षर-संख्या ३७-३८ है। यद्यपि यह सं० १९६६ की ही लिखित है तथापि शुद्ध है । इसका अनुवाद स्वतंत्र रूपसे मूलानुगामी किया गया है।
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