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श्रावकाचार-संग्रह
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सल्लेखनाका विधान एक-एक इन्द्रियके विषय-वश हाथी आदि प्राणी महान् दु:ख पाते हैं मनोनिरोध करने और दुर्लेश्याओंके परित्यागका उपदेश समता, वन्दनादि छह आवश्यकोंका वर्णन दर्शन प्रतिमादि ११ प्रतिमाओंका वर्णन अनित्यादि १२ भावनाओंका वर्णन चारित्र धारण करके पुनः विषय-लोलुपी जन विष्टाके कीड़े होते हैं सत्पात्रोंको दान देनेवाले पुरुष चक्रवर्ती आदि महान् पदोंको प्राप्त होते हैं अष्ट द्रव्योंसे पूजन करनेवाला मोक्ष प्राप्त करता है श्रावकके प्रधान कार्य दान और पूजन हैं मुनिके प्रधान कार्य स्वाध्याय और आत्मालोचन हैं अल्प आहार, निद्रादिवाला पुरुष अल्प संसारी होता है बिना जलसे धोये अशुद्ध द्रव्योंसे और खण्डित पुष्षोंसे पूजन करनेके दुष्फलका वर्णन शुद्ध द्रव्योंसे पूजन करनेके सुफलका वर्णन अशुद्ध चित्त और अशुचि शरीरसे पूजन करनेके दुष्फलका वर्णन पुलाक आदि निर्ग्रन्थोंका स्वरूप पंच परमेष्ठीके गुणोंका वर्णन नवनीत आदि अभक्ष्य पदार्थोके त्यागका उपदेश नामादि निक्षेपोंकी अपेक्षा चार प्रकार के श्रावकोंका वर्णन कृष्णलेश्यादि धारक जीवोंका वर्णन पाक्षिक आदि श्रावकोंके स्वरूपोंका वर्णन धर्म-प्राप्तिके कारण बाईस परीषहोंको सहन करनेका उपदेश पंच समितियोंका वर्णन अनशनादि तपोंका वर्णन यतनापूर्वक श्रावक-व्रतके धारक और सोलह कारण भावनाओंकी भावना करनेवाले मनुष्य
तीर्थंकर नाम कर्मका बन्ध करते हैं सम्यक्त्वीके प्रगमादि भावोंका वर्णन सम्यक्त्वके आठ अंगोंका वर्णन अष्टाङ्ग सम्यग्ज्ञानकी आराधनाका फल सम्यग्दर्शनके बिना तेरह प्रकारके चारित्रका धारण करना व्यर्थ है धर्मक (पुण्यके) माहात्म्यका वर्णन पापके दुष्फलका वर्णन मिथ्यात्व-सेवन और पंच उदुम्बर फल-भक्षणादिसे धर्म नहीं होता रत्नत्रय-धर्मकी और क्षमादि १० धर्मोकी आराधना आदि सत्कार्योसे ही धर्म होता है जीवके नास्तित्व-वादियोंका निराकरण और आत्माका अस्तित्व-साधन
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