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श्रावकाचार-संग्रह
भी अनेक श्रावकाचार रचे गये जिनमेंसे कुछ उनसे प्रभावित हैं किन्तु उनके जैसी सन्तुलित आगमिक दृष्टि उनमें नहीं है। मेधावी पण्डितका धर्मसंग्रह श्रावकाचार तो सागारधर्मामृतकी ही अनुकृति है। इन सब उत्तरकालीन श्रावकाचारोंके तुलनात्मक अध्ययनसे उत्तरकालीन श्रावक धर्मका यथार्थ रूप सामने आता है और उसमें हुए परिवर्तन स्पष्ट होते हैं। .
पं० हीरालालजी सिद्धान्तशास्त्री एक परिश्रमशील साहित्यानुरागी आगमज्ञ विद्वान हैं। उन्होंने जैन-साहित्यकी असीम सेवा की है और इस वृद्धावस्था में भी युवकोंकी तरह कार्य संलग्न हैं। यह उनका ही पुरुषार्थ है जो उपलब्ध समस्त श्रावकाचारोंका संग्रह हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशमें आ सका है। उनकी इस साहित्यसेवाका मूल्यांकन भावी पीढ़ी अवश्य हो विशेष रूपसे कर सकेगी। हम तो केवल उनका अभिनन्दन ही करते हैं। स्व० ० जीवराजजीके सुदानका यह सदुपयोग अवश्य ही हर्षवर्धक है और उसके लिए जीवराज ग्रन्थमालाका संचालक मण्डल बधाईका पात्र है। वाराणसी
कैलाशचन्द शास्त्री रक्षाबन्धन २०३४
ग्रन्थमाला सम्पादक
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