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धर्मोपदेशपीयूषवर्ष-श्रावकाचार सामान्यतो निशायां च जल-ताम्बूलमौषधम् । गृह्णन्ति चेह गृह्णन्तु नैव प्राई फलादिकम् ॥६४
तंबोलोसहु जलु मुइवि जो अत्थंविए सूरि । भोगासण फल अहिलसइ तें किउ दंसणु दूरि ॥१० ये च भव्या निशाऽऽहारं सन्त्यजन्ति चतुर्विधम् । स्यात्षण्मासोपवासानां तेषां संवत्सरे शुभम् ॥६५
उक्तंचधर्मबुद्धचा तमस्विन्या भोजनं ये वितन्वते । आरोपयन्ति ते पद्मवनं वह्नौ विवृद्धये ॥११ निःशेषेऽह्नि बुभुक्षां ये सोढ्वा सुकृतकाङ्क्षा । भुञ्जन्ते निशि संवद्धर्य कल्पाङ्ग भस्मयन्ति ते ॥६६
पुनश्चोक्तम्उलूक-काक-मार्जार-गृध्र-संवर-शूकराः । अहि-वृश्चिक-गोधाश्च जायन्ते रात्रिभोजनात् ॥१२ रात्रिभुक्तिपरित्याग-व्रतोपेतैविचक्षणः । अन्धकार दिने चापि भोक्तव्यं नैव सर्वदा ॥६७ इत्यादियुक्तितो नित्यं रात्रिभुक्त त्यजन्ति ये । ते भवन्ति महाभन्याः स्वकुलाम्भोजभास्कराः ॥६८ पुत्र-पौत्रादिबन्धुत्वं मणि मुक्ताफलादिकम् । स्त्रियो वा पुरुषश्चापि प्राप्नुवन्ति स्ववाञ्छितम् ॥६९ रात्रिभोजनसन्त्यागाद् रूपसौभाग्यसम्पदाम् । लभन्ते सत्कुलं कीत्ति कान्ति रोगविजितम् ॥७० काणान्धा वधिरा मूका दुःखदारिद्रपीडिताः । रात्रिभोजनपापेन भवन्ति सुखजिताः ॥७१
सर्वथा छोड़कर ही भोजन करना चाहिये ॥६३।। जो लोग साधारणतः रात्रिमें जल, ताम्बल और औषधि लेते हैं, वे उन्हें भले ही लेते रहें। किन्तु फलादिक तो नहीं ही ग्रहण करना चाहिये ॥६४॥
जैसा कि कहा है जो सूर्यके अस्तंगत हो जानेपर ताम्बूल, औषधि और जलको छोड़कर भोग्य खाद्य स्वाद्य और फलको अभिलाषा करता है, वह सम्यग्दर्शनको अपनी आत्मासे दूर करता है ॥१०॥
किन्तु जो भव्य जीव चारों ही प्रकारके आहारको रात्रिमें खाना सम्यक् प्रकारसे छोड़ते हैं, वे एक वर्षमें छह मासके उपवासोंका शुभ पुण्य प्राप्त करते हैं ॥६५॥
और भी कहा है -जो लोग धर्मबुद्धिसे रात्रिमें भोजन करते हैं, वे कमलवनको उसकी वृद्धिके लिये अग्निमें आरोपण करते हैं ॥११॥
जो लोग सुकृत (पुण्य) की आकांक्षासे सारे दिनमें भूखको सहकर रात्रिमें खाते हैं, वे कल्पवृक्षका संवर्धन करके उसे भस्म करते हैं ॥६६।। और भी कहा है-रात्रिमें भोजन करनेसे मनुष्य उलूक, काक, मार्जार, गिद्ध, संवर, सूकर, सर्प, बिच्छू और गोहटा होते हैं ।।१२।। रात्रि भोजन परित्यागवतसे संयुक्त ज्ञानियोंको दिन में भी अन्धकारके समय और अन्धेरे स्थानमें कभी भी नहीं खाना चाहिये ॥६७॥ इत्यादि युक्तियोंसे रात्रिभोजनको निषिद्ध जानकर जो महाभव्य रातमें खानेका परित्याग करते हैं, वे अपने कुलरूप कमलको विकसित करनेवाले सूर्यके समान महापुरुष होते हैं ।।६८॥ रात्रिमें भोजनके त्यागसे स्त्री और पुरुष सभी लोग पुत्र, पौत्रादि बन्धुजनोंको और अपने वांछित मणि, मुक्ताफलादिकको प्राप्त करते हैं। तथा रूप, सौभाग्य सम्पदाको उत्तम कुलको, कीत्तिको, कान्तिको और रोग-रहित शरीरको पाते हैं ॥६९-७०॥ रात्रिभोजनके
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