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________________ प्रश्नोत्तरश्रावकाचार शाल्यक्षतरखण्डेश्च सदुज्ज्वजिनेश्वरान् । समचंयन्ति ये भव्याः ते भजन्त्यक्षयं सुखम् ॥१९८ जातीचम्पकसत्पमकेतक्यादिप्रसूनकैः । पूजयन्ति जिनान् भव्या नाके ते यान्ति पूज्यताम् ॥१९९ क्षीरमोदकपक्वान्नशाल्यन्नवटकादिभिः । जिनपूजां विधत्ते यो भजोगं त्रिलोकजम् ॥२०० अभ्यर्चयन्ति ये दोपैः सत्कर्पूरघृतादिजैः । अर्हन्तं केवलज्ञानं ते भजन्ते सुदृष्टयः ॥२०१ । चन्दनागुरुकर्पूरसद्व्यादि दहन्ति ये । जिनाग्रे कर्मकाष्ठानां भस्मीभावं श्रयन्ति ते ॥२०२ सदाम्रकदलीनालिकेरपूगीफलादिकान् । ढोकयन्ति जिनाग्रे ये लभन्ते फलमीप्सितम् ॥२०३ पुष्पाञ्जलि जिनेन्द्राणां ये क्षिपन्ति गृहाधिपाः । पुष्पवृष्टिसमाकोणं भजन्ति नाकमुत्तमम् ॥२०४ इत्यष्टभेदसातैर्महापूजामहोत्सवैः । अर्चयन्ति जिनेन्द्रान्ये तेषां स्युः सर्वसम्पदः ॥२०५ पादपद्मौ जिनेन्द्राणां ये बुधाः पूजयन्ति वै । इन्द्रभूति शुभात्प्राप्य देवैस्ते यान्ति पूज्यताम् ॥२०६ जिनेन्द्रपूजया भव्या लभन्ते चक्रवतिताम् । षट्खण्डवसुधायुक्तां रत्ननिध्यादिसंयुताम् ॥२०७ जिनपूजाप्रभावेन सत्तीर्थेशपदं नणाम् । जायते महिमोपेतं त्रैलोक्यपतिपूजितम् ॥२०८ पूजां विना जिनेन्द्राणां भोगसौख्यादिकं सदा । जायते न मनुष्याणां तस्मात्सा क्रियते बुधैः ॥२०९ त्रिकालं जिननाथान् ये पूजयन्ति नरोत्तमाः । लोकत्रयभवं शर्म भुक्त्वा यान्ति परं पदम् ॥२१० पाते हैं ॥१९७।। जो भव्य जीव अखण्ड और उज्ज्वल अक्षतोंसे भगवान् जिनेन्द्र देवकी पूजा करते हैं वे अक्षयपद वा मोक्षके परम सुखको प्राप्त होते हैं ॥१९८॥ जो भव्य जीव जाती, चम्पा, कमल, केतकी आदिके सुन्दर पुष्पोंसे भगवान् जिनेन्द्रदेवकी पूजा करते हैं वे स्वर्गमें भी पूज्य गिने जाते हैं ॥१९९।। जो भव्य दूध, लड्डू, पकवान, शाली चावल, बड़े आदि नैवेद्यसे भगवान्की पूजा करते हैं वे तीनों लोकोंमें उत्पन्न हुए समस्त भोगोंको प्राप्त होते हैं ॥२००॥ जो सम्यग्दृष्टी पुरुष कपूर और घीके बने हुए दीपकसे भगवानकी पूजा करते हैं वे केवलज्ञानको अवश्य प्राप्त करते हैं ॥२०१।। जो भव्य भगवान्के सामने चन्दन, अगुरु, कपूर आदि श्रेष्ठ द्रव्योंको दहन करते हैं, इनको धूप बनाकर खेवते हैं वे कर्मरूपी इंधनको भस्म कर डालते हैं ।।२०२।। जो गृहस्थ आम, केला, नारियल, सुपारी आदि फलोंको भगवान्के सामने समर्पण करते हैं वे इच्छानुसार फलको प्राप्त होते हैं ॥२०३।। जो गृहस्थ भगवान् जिनेन्द्रदेवपर पुष्पांजलि क्षेपण करते हैं वे पुष्पवृष्टिसे भरे हुए उत्तम स्वर्गमें जा विराजमान होते हैं ॥२०४॥ इस प्रकार आठ भेदोंसे उत्पन्न हुई महा पूजाके महोत्सवोंसे जो भगवान् जिनेन्द्रदेवकी पूजा करते हैं उनके सब तरहकी सम्पत्ति प्राप्त होती है ॥२०५।। जो विद्वान भगवान् जिनेन्द्रदेवके चरणकमलोंको पूजा करते हैं वे प्राप्त हुए उस पुण्य कमके उदयसे इन्द्रकी विभूति पाकर अनेक देवोंके द्वारा पूज्य होते हैं ।२०६॥ भगवान् जिनेन्द्रदेवकी पूजा करनेसे भव्य जीवोंको छहों खण्ड पृथ्वीसे सुशोभित तथा रत्न और निधियोंसे विभूषित चक्रवर्तीकी विभूति प्राप्त होती है ।।२०७॥ भव्य जीवोंको इस भगवान् जिनेन्द्रदेवकी पूजाके प्रभावसे अनन्त महिमासे सुशोभित और तीनों लोकोंके स्वामियोंके द्वारा पूज्य ऐसे तीर्थकर पदकी प्राप्ति होती है ।।२०८॥ भगवान् जिनेन्द्रदेवकी पूजा किये विना मनुष्योंको भोग और सुखकी प्राप्ति कभी नहीं होती है इसीलिये विद्वान् लोग भगवान्की पूजा सदा किया करते हैं ॥२०९।। जो उत्तम पुरुष सवेरे, दोपहर और शाम तीनों समय भगवान् जिनेन्द्रदेवकी पूजा करते हैं वे तीनों लोकोंमें उत्पन्न होनेवाले समस्त भोगोंको भोगकर मोक्षपदमें जा विराजमान होते हैं ॥२१०।। जो भव्य पुरुष भगवान् जिनेन्द्रदेवकी एक बार भी उत्तम पूजा कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001552
Book TitleShravakachar Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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