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________________ ४८४ ४८४ ४८५ ४८६ ४८७ ४८७ ४८८ ४८९ ( ३१ ) अनर्थदण्ड व्रतका स्वरूप और अतिचारोंका वर्णन सामायिक शिक्षाव्रतका स्वरूप सामायिक शिक्षाव्रतके अतिचार प्रोषधोपवास शिक्षाव्रतका स्वरूप और उसके अतिचार भोगोपभोग शिक्षाव्रतका स्वरूप और उसके अतिचार अतिथिसंविभाग व्रतका स्वरूप, पात्रोंके भेद, नवधाभक्ति और दाताके सप्त गुणोंका वर्णन दाताका स्वरूप और देय वस्तुका वर्णन आहारादि चारों दानोंका फल बताकर उनके देनेका उपदेश पात्र, अपात्र और कुपात्रका स्वरूप बताकर पात्रोंको ही दान देने और अपात्र-कुपात्रको नहीं देनेका उपदेश चारों दानोंमें प्रसिद्ध पुरुषोंका उल्लेख अतिथिसंविभाग व्रतके अतिचार दानका महान् फल बताकर उसे देनेकी प्रेरणा जिनपूजनका माहात्म्य बताकर उसके नित्य करनेका उपदेश पंच नमस्कार मंत्रके जापका विधान और फलका वर्णन जिन बिम्ब और जिनालय बनवानेका फल बताकर उनके निर्माण करनेका उपदेश धर्मके सात क्षेत्र और उनमें दानादि करनेका उपदेश श्रावककी ग्यारहों प्रतिमाओंका नाम-निर्देश दर्शनिक प्रतिमाका स्वरूप व्रत आदि शेष प्रतिमाओंका स्वरूप ग्यारहवीं प्रतिमा का स्वरूप सल्लेखना का स्वरूप ग्रन्थकार प्रशस्ति ४९२ ४९२ ४९४ ४९५ ४९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001552
Book TitleShravakachar Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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