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श्रावकाचार-संग्रह शिवशर्माकरं येन सर्वसिद्धिव्यवस्थितम् । प्राप्तं मुक्तिपदं स स्याच्छिवो लोके न तद्विना ॥११ लोकालोकं च जानाति ज्ञानेनैव सपर्ययाम् । योऽसौ बुद्धो भवेन्मान्यो नान्यो नाम्ना हि केवलम् ॥१२ आत्मानमपरं वा यो वेत्ति द्रव्यकदम्बकम् । त्रिकालगोचरं साक्षात्स सर्वज्ञो भवेब्रुवम् ॥१३ यः पश्यति चिदानन्दं स्वयं स्वस्मिन् तथा परम् । बाह्य चराचरं विश्वं सर्वदर्शी स कीर्तितः ।।१४ तीर्थ धर्ममयं यस्तु ज्ञानतीथं प्रवर्तयेत् । भवेत्तीर्थकरः सोऽपि सर्वसत्त्वहितोद्यतः ॥१५ योषितस्त्रादिसंत्यागाद्वीतरागो बभूव च । धर्मोपदेशनाद्धर्मो निर्ग्रन्यो ग्रन्थवर्जनात् ॥१६ देवानामधिदेवत्वाद्देवदेवो जगद्गुरुः । गुरुत्वादम्बरत्यागाद्दिगम्बर इति स्मृतः ॥१७ ऋषीणामधिज्येष्ठत्वाद् ऋषीशो विमलो भवेत् । मलादिवर्जनाद्देवो मुक्तिसंगमक्रीडनात् ॥१८ इत्यादिनामसंदृब्धामहन्नामावलों जप । सार्थेनापि सहस्राष्टकेन पुण्यकरां वराम् ॥१९ एकचित्तेन यो धीमान् नाम प्रादाय संजपेत् । ध्यायेद्वा जिननाथस्य साक्षात्सोऽपि जिनायते ॥२० सर्वदोषविनिर्मुक्तं मुक्तिस्त्रीसंगलालसम् । अनन्तमहिमायुक्तं त्वं भज श्रीजिनाधिपम् ॥२१ ये दोषा जिननाथेन नाशिता मे प्ररूपय । स्वीकृतान्मूढलोकैस्तान् स्वामिन् मुक्तिप्रबन्धकान् ॥२२
सुशोभित ऐसे मोक्षपदको प्राप्त हुए हैं इसलिये संसारमें शिव (कल्याण करनेवाले) कहलाते हैं। शिव भी उनके सिवाय अन्य कोई नहीं है ॥११॥ भगवान् अरहन्तदेव लोकाकाशके समस्त पदार्थोंको तथा अलोकाकाशको उनकी अनन्त पर्यायों सहित जानते हैं इसलिये वे ही बुद्ध हैं, वे ही संसारमें मान्य हैं, उनके सिवाय संसारमें अन्य कोई बुद्ध नहीं है ॥१२॥ वे भगवान् अपने आत्माको तथा अन्य समस्त द्रव्योंको उनकी भूत, भविष्यत्, वर्तमान तीनों कालोंमें होनेवाली पर्यायों सहित साक्षात् जानते हैं इसलिये सर्वज्ञ कहलाते हैं ।।१३।। वे भगवान् अपने चिदानन्दमय आत्माको स्वयं अपने आत्मामें ही देखते हैं तथा चर अचर रूप बाहरके समस्त संसारको देखते हैं इसलिये वे सर्वदर्शी (सबको देखनेवाले) कहलाते हैं ॥१४॥ समस्त जीवोंका हित करनेवाले वे भगवान् धर्मरूप तीर्थकी और ज्ञानरूप तीर्थकी प्रवृत्ति करनेवाले हैं इसलिये तीर्थकर कहलाते हैं ।१५।। उन्होंने स्त्री वस्त्र आदिका सर्वथा त्याग कर दिया है इसलिये वे वीतराग कहलाते हैं, अरहन्त अवस्थामें सदा धर्मोपदेश देते रहते हैं इसलिये धर्म कहलाते हैं और सब तरहके परिग्रहसे रहित हैं इसलिये निर्ग्रन्थ कहलाते हैं ॥१६॥ वे भगवान् देवोंके भी देव हैं इसलिये देवदेव वा देवाधिदेव कहलाते हैं, सबके गुरु हैं इसलिये जगद्गुरु कहलाते हैं और वस्त्रादिकके त्यागी हैं इसलिये दिगंबर कहे जाते हैं ॥१७॥ ऋषियोंमें भी सबसे बड़े हैं इसलिये ऋषीश कहे जाते हैं । सब तरहके मल वा दोषोंसे रहित हैं इसलिये विमल कहलाते हैं और मुक्तिरूपी कांताके साथ क्रीड़ा करते हैं इसलिये देव कहलाते हैं ॥१८|| इस प्रकार सार्थक अर्थको धारण करनेवाले एक हजार आठ नाम भगवान् अरहन्तदेवके ही हैं। उनकी यह नामावली सबसे उत्तम है और पुण्य उत्पन्न करनेवाली है इसलिये हे भव्य ! तू उन्हींका जप कर ॥१९॥ जो बुद्धिमान् एकाग्रचित्त होकर भगवान् जिनेन्द्रदेव का नाम लेकर जप करता है वा ध्यान करता है वह भी कालान्तरमें साक्षात् जिनेन्द्रदेव हो जाता है ॥२०॥ हे भव्य ! यदि तू मुक्तिरूपी लक्ष्मीका साथ करना चाहता है-मोक्ष प्राप्त करना चाहता है तो सब दोषोंसे रहित और अनन्त महिमाको धारण करनेवाले भगवान् जिनेन्द्रदेवकी सेवा कर ॥२१॥
प्रश्न-हे भगवन् ! भगवान् जिनेन्द्रदेवने जिन दोषोंको नष्ट कर दिया है, मूर्ख लोक ही
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