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________________ ११९ ११९ १२० १२० १२० १२१-१३० १२१ १२१ २ १२३ १२५ १२५ ( १८ ) सप्त व्यसन त्यागके अतिचारोंका वर्णन स्वपत्नीको धर्ममें व्युत्पात करनेका उपदेश कुलीन स्त्रियोंको पतिके मनोनुकूल होकर चलनेका उपदेश स्वपत्नीमें पुत्रोत्पत्तिका प्रयत्न करनेका निर्देश सत्पुत्रोत्पत्तिके विना गृहस्थ तृतीय अधिकार वतिक प्रतिमाका स्वरूप और शल्योंके परित्यागका उपदेश श्रावकके १२ व्रतोंके नाम निर्देश कर अहिंसाणुव्रतका विवेचन जिनालय बनवाने और तीर्थयात्रादि करने रूप पुण्यराशिमें गमनागमनादि जनित दोषांश पाप नहीं कहलाता अहिंसाणुव्रतके अतिचार अहिंसाणुव्रतकी रक्षाके लिए रात्रि-भोजन त्याग आवश्यक है रात्रि-भोजनके दोषोंका वर्णन देव पूर्वाह्न में, ऋषि मध्याह्नमें, दानव सायं और राक्षस रात्रिमें खाते हैं रात्रिभोजनत्यागी अपने जीवनका अर्धभाग उपवाससे बिताता है जल छानकर ही स्नान, पानादि करनेका उपदेश भोजनके अन्तरायोंका वर्णन भोजनादिके समय मौन धारण करनेके लाभका वर्णन सत्याणुव्रतका वर्णन धर्मात्मा और जैनशासनके उद्धारार्थ तथा जीव-रक्षार्थ सत्य वचनका अपवाद सत्याणुव्रतके अतिचार अचौर्याणुव्रतका विस्तृत वर्णन अचौर्याणवतके अतिचार ब्रह्मचर्याणुव्रतका स्वरूप ब्रह्मचर्याणुव्रतके अतिचार परिग्रहपरिमाणाणुव्रतका विस्तृत वर्णन परिग्रह परिमाणव्रतके अतिचार देवायुके सिवाय अन्य आयु को बांधनेवाला मनुष्य अणुव्रत या ___ महाव्रत धारण नहीं कर सकता निर्मल पाँच अणुव्रतोंका धारक जीव देवगति प्राप्त करता है चतुर्थ अध्याय गुणवतका स्वरूप दिग्वतका स्वरूप और उसकी महत्ता अनर्थदण्डव्रतका विस्तृत स्वरूप अनर्थदण्डव्रतके अतिचार भोगोपभोगव्रतका विस्तृत वर्णन १२६ १२६ १२७ १२७ १२७ १२८ १२८ १२९ १३० १३१-१४३ १३१ १३१ १३१ १३२ १३२ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001552
Book TitleShravakachar Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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