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________________ श्रावकाचार-संग्रह الله الله الله الله » الله الله الله » سه م ليس لل N । । له । । ३७० । । । । ग्यारह प्रतिमाओंका वर्णन श्रावकके लिए षट् आवश्यकोंके अवश्य कर्तव्यताका उपदेश - ३३४ सामायिक, स्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग इन छहों आवश्यकोंका विस्तृत विवेचन ३३६ सामायिकादि करते समय आसन, मुद्रा, आवर्त आदिका वर्णन - - वन्दना-सम्बन्धी ३२ दोषोंका वर्णन कायोत्सर्ग-सम्बन्धी ३२ दोषोंका वर्णन दान, पूजा, शील और उपवासरूप चतुर्विध श्रावक धर्मका विस्तृत वर्णन दान देने के योग्य पात्रोंका और नहीं देने योग्य अपात्रोंका विस्तृत वर्णन - अभयदान आदि चारों दानोंका विस्तृत वर्णन वसति-दान आदिके फलका वर्णन ३६६ भोगभूमिज मनुष्योंके सुखादिका वर्णन ३६८ कुपात्र और अपात्र दानका फल-वर्णन सुपात्रदानका फल-वर्णन तीर्थकर जिनदेवका स्वरूप-वर्णन ३७२ सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधुका स्वरूप वर्णन ३७४ जिन-पूजनके फलका वर्णन ३७५ शीलका वर्णन ३७५ द्यूतादि सप्त व्यसनोंका विस्तृत वर्णन ३७६ मौनके गुणोंका निरूपण ३८० उपवासका विस्तृन विवेचन ३८२ श्रावकके कुछ विशेष गुणोंका वर्णन दर्शन विनय आदि चारों प्रकारकी विनयका वर्णन ३८५ वैयावृत्त्यका विस्तृत विवेचन । ३८९ प्रायश्चित्त और स्वाध्याय तपका वर्णन ३९० चौदहवें परिच्छेदमें बारह भावनाओंका विस्तृत वर्णन ३९४ ध्यानके चारों भेदोंका स्वरूप धर्म्यध्यानके दश भेदोंका वर्णन ४०७ पदस्थ ध्यानका विस्तृत वर्णन ४०८ विविध मंत्र-पदोंकी आराधना-विधिका वर्णन ४०९ पिण्डस्थ, रूपस्थ और अरूपस्थ ध्यानका वर्णन ४१३ बहिरात्माका स्वरूप बताकर अन्तरात्मा बनकर परमात्मा बननेका उपदेश ४१४ ग्रन्थकारकी प्रशस्ति ८ वसुनन्दि-श्रावकाचार ४२२-४८१ सम्यक्त्वका स्वरूप ४२२ जीवादि सात तत्त्वोंका स्वरूप ४२३ । । । । ३८४ । । । । । ४०५ । । । । ४२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001551
Book TitleShravakachar Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1988
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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