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________________ विषय-सूची १०३ १०५ १०८ १०९ ११० ११० ११२ ११३ ११४ ११७ ११८ ११९ १२० १२१ १२२-२६२ १२३ १२४-१३० الله हिंसाका विस्तृत विवेचन अष्ट मूल गुणोंका निरूपण देवता-अतिथि आदिके लिए जीव-घातका निषेध सत्य व्रतका वर्णन अचौर्यब्रतका वर्णन ब्रह्मवतका वर्णन परिग्रहत्याग व्रतका वर्णन रात्रिभोजन त्याग व्रतका वर्णन तीन गुणव्रतोंका वर्णन चार शिक्षाव्रतोंका वर्णन सल्लेखनाका वर्णन सम्यक्त्व, व्रत, शील और सल्लेखनाके अतीचारोंका वर्णन । बारह तपोंके यथाशक्ति करनेका उपदेश अन प्रेक्षा और परीषह-जयका उपदेश रत्नत्रयधर्मकी महिमा और ग्रन्थका उपसंहार यशस्तिलकचम्पूगत-उपासकाध्ययन धर्मका स्वरूप विभिन्न-मताभिमत मोक्षके स्वरूपका प्रतिपादन और उनका निराकरणसम्यक्त्वका स्वरूप आप्तके स्वरूपका सयुक्तिक विवेचन ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदिकी आप्तताका निराकरण आगमका स्वरूप और विषय जीवादि पदार्थों का स्वरूप कर्म-बन्धके कारणोंका विवेचन लोकका स्वरूप लोक-प्रचलित मूढताओंका निराकरण सम्यग्दर्शनके दोषोंका वर्णन निशंकित अंगका वर्णन निःकांक्षित अंगका वर्णन निविचिकित्सा अंगका वर्णन समूढदृष्टि अंगका वर्णन उपगूहन अंगका वर्णन स्थितिकरण अंगका वर्णन प्रभावना अंगका वर्णन वात्सल्य अंगका वर्णन सम्यग्दर्शन और उसके भेदोंका वर्णन ال १३२ १३३ १३७ १४० १४२ १४२ १४३ १४३ १४५ १४५ १४६ १४७ १४७ १४८ १४९ १४९ १५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001551
Book TitleShravakachar Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1988
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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