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धारेश्वरश्रीभोजराजविरचितं कूर्मशतम् ।
[१] ॐ नमः शिवाय ॥
भुइँ वह कहो वुब्भइ तस्सेअ निअह कंकालं । हेलाए जेण सो इह तुम्हाण सिवो सिवं देउ ॥१॥
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कुलगिरिणो लहुवविआ जलनिहिणो थाहिआ सकज्जेण । पच्छा धरिआ धरणी सुवहा जेणं हु ( ? खु) सा होइ ||२|| कुलगिरिधरणीजलनिहिमेरुप्पमुहा नरेन्द इह ( २ ) पढमं [1] लहु( व ) विऊणं पच्छा धरिअं भुअणं पि हेलाए ||३||
धरणि च्चि ता गरुई ते गरुआ जे वहंति तं पि पुणो । लहुवविअं पढमं चिअ एअं सयलं तओ वूढं ॥४॥
धवलो सोचिअ वुच्चइ भरधारणवावडेहि (३) समयं पि । उच्चल्लइ जो हु भरं सो एक्को भोअ तं चेअ॥५॥
लहुवविऊणं सयलं भुअणं भरधारएहि समयं पि । पच्छा वुब्भइ भूवइ को हु गुणो चडइ इअविहिए ॥६॥
इह अप्पस्स सयासा वुब्भइ लहुअं इमेण विहिएण । भण चड्ड़ को इह गुणो भूवइ धरणीधरंतस्स ॥७॥
धरणि तुहं गरुअत्तं कुम्मप्पमुहेहि एत्थ जं दिन्नं । लीलाए तं हु( ?खु) हरिअं भोएणं इअधरंतेण ॥८॥
भारस्स इह गुरुत्तं ( ४ ) धवलाहासेहिं चड्ड् चडवविअं । सच्चिमधवलेण हिओ भारो वि हु लहइ लहुवत्तं ॥ ९ ॥ कुम्मेण तु गुरुत्तं करचरणविवज्जिएण वड्ढविअं । पच्छा सेसमुहेहिं भोएणं तं कयं पयडं ॥ १० ॥
सच्चेण वि अइगरुआ धरणी पडिहाइ चिन्तमाणाण । इह पुण एसा कलिआ पडिहायड़ भोअ कह लहु( ५ ) आ ॥११॥
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