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श्रीभोजदेवविरचितं अवनिकूर्मशतम्
[१] ॐ नमः शिवाय ॥ इच्छा )एँ जस्स भुअणं धरिअं एक्काएँ असमसत्तीए । उअणेउ सो सुहाई तुम्हाणं पव्वईनाहो ॥१॥ सो कुम्मो वो रक्खउ कणयद्दिकडारदेहवित्थारो । जो जरढभुअणवल्लीकंदच्छायं समुव्वहइ ॥२॥ जस्स भणिएण भुअणं कुम्मप्पमुहा वि धारयन्ति (२) इमं । सो अकलिज्जसरूओ ससिचूडो देउ सोक्खाइं ॥३॥ कमढकुडुम्बे विउले वि पसविआ उअह एत्थ सा एक्का । भुअणभरस्स वि पट्ठी जीए जाएण ओड्डविआ ॥४॥ कुम्मेण को णु सरिसो विणा वि कज्जेण जेण एक्केण । जह निअसुहस्स पट्ठी तह दिण्णा (३) भुअणभारस्स ॥५॥ एक्क च्चि( अ )सा धन्ना मज्झे महिलाण पसविआ कमढी । अइदुव्वहो वि वूढो भुअणभरो जीए जाएण ॥६॥ कमढकुले के न हुआ अप्पा वि हु दुव्वहो परं ताण । अविरोलं भुअणभरो उव्वूढो तेण एक्केण ॥७॥ कमढकुले जायाणं संखं को सुणइ किं तु (४) सो एक्को । आजम्मं भुअण( भ )रो उव्वूढो जेण एक्केण ॥८॥ जो कह व परिग्गहिओ भारो कुम्मेण निअह तस्स गई । जीएण समं पेच्छह पम्मुक्को पलयपेरन्ते ॥९॥ पायाले मज्जंतं खधं दाऊण भुअणमुद्धरिअं । तेण कमढेण सरिसो न य जाओ नेअ जम्मिहिइ ॥१०॥ (५) निअसुहकज्जे जम्मो जाणं संखा वि ताण को मुणइ । परकज्जेक्करसिल्लो कुम्मकुडुम्बे परं दिट्ठो ॥११॥
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