________________
-328 : २-१९०]
परमप्प - पयासु
317) जिणि वत्थ जेम बुहु देहु ण मण्णइ जिष्णु । देहि जिणि णाणि तहँ अप्पु ण मण्णइ जिष्णु ॥ १७९ ॥ (318) वत्थु पणट्ठइ जेम बहु देहु ण मण्णइ ठु ।
ट्ठे देहे णाणि तहँ अप्पु ण मण्णइ णट्ठ ॥ १८० ॥ 319) भिण्णउ वत्थु जि जेम जिय देहहँ मण्णइ णाणि ।
देवि भण्उँ गाणि तहँ अप्पहँ मण्णइ जाणि ॥ १८१ ॥ 320) इहु तणु जीवड तुज्झ रिउ दुक्खई जेण जणेइ ।
सो पर जाहि मित्तु तुहुँ जो तणु एहु हणेइ ॥ १८२ ॥ 321) उदयहँ आणिवि कम्मु महाॅ जं भुंजेवउ होइ हो ।
तं स आवि उ खविउ मइँ सो पर लाहु जि कोइ ॥ १८३॥ 322) णिट्ठर - वय, सुणेवि जिय जइ मणि सहण ण जाइ ।
तो हु भावहि बंभु परु जि मणु झत्ति विलाइ ।। १८४।। 323) लोउ विलक्खणु कम्म-वसु इत्थु भवंतरि एइ ।
चुज्जु कि जइ इहु अपि ठिउ इत्थु जि भवि ण पडेइ ॥ १८५ ॥ 324) अवगुण - गहण महुतणई जइ जीवहं संतोसु ।
तो तहँ सोक्ख उ उ इउ मण्णिवि चइ रोसु ॥१८६॥ 325) जोइ चिति म कि पि तुहुँ जइ बोहउ दुक्खस्स ।
तिल - तुस- मित्तुषि सल्लडा वेयण करइ अवस्स ॥ १८७॥ 326) मोक्खु म चितहि जोइया मोक्खु ण चितिउ होइ ।
जेण णिबद्धउ जीवडउ मोक्खु करेसइ सोइ ॥ १८८ ॥ 327) परम-समाहि-महा-सरहिँ जे षड्डहिँ पइसेवि ।
अप्पा ress विमलु तहँ भव-मल जंति वहेवि ।। १८९ ।। 328) सयल-वियहँ जो विलउ परम-समाहि भणंति ।
ते सुहासु भावडा मुणि सयल वि मेल्लंति ॥ १९०॥
317) Wanting in TKM. 318) Wanting in TKM; A चेम्व for जेम 319) Wanting
in TKM. 320)TKM एहु, B एउ C इउ for इहु. 321 ) TKM आणवि, तं जइ आयउ; c वि for जि. 322) TKM निरवयणइं सुणवि, मणु सहणु; B जिट्ठरु; Cजउ for जिं; TKM झडिदि for झति 323) Wanting in TKM; C विअक्खणु, BC एत्थु, चोज्जु. 324) TKM गहणहि महुणहं, एउ मण्णवि चइ दोसु. 325) TKM किंचि for कि पि; भीहहि, मेत्तु वि. 326) G करीसइ; TKM सोवि. 327 ) 0 सरिहि; TKM पविसेनि, तहि for तहं. 328 ) TKM भावडउ, सयलु वि.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org