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________________ २६ जोइंदु-विरइउ 281) घर-वासउ मा जाणि जिय दुक्किल-वासउ एहु । पा डिउ अविचल निस्संदेहु || १४४ ॥ 282) देहु विजित्यु ण अप्पणउ तहि अप्पणउ कि अण्णु । पर- कारणि मण गुरुव तुहुँ सिव-संगम अवगण ।। १४५ ।। 283) करि सिव - संगम एक्कु पर जहि पाविज्जइ सुक्खु । जोइ अण्णु म चिति तुहुँ जेण ण लब्भइ मुक्खु || १७६ || 284) बलि किउ माणुस - जम्मडा देवखंतह पर सारु । जइ उटुब्भइ तो कुहइ अह डज्झइ तो छारु ॥ १४७॥ 285) उव्वलि चोपडि चिट्ठ करि देहि सु-मिठाहार । देहहँ सयल रित्थ गय जिमु दुज्जणि उवयार ॥१४८॥ 286) जेहउ जज्जरु गरय-घरु तेहउ जोइय काउ । res frरंतरु पूरियउ किम किज्जइ अणुराउ || १४९ ॥ 287 ) दुक्ख पावइँ असुचियाँ ति-हुयणि सयलई लेवि । एयहिँ देहु विणिम्मियउ विहिणा वहरु मुणेवि ।। १५० ।। 288 ) जोइय देहु घिणावण उ लज्जहि किं ण रमंतु । णाणि धम्में रह करहि अप्पा विमलु करंतु ॥ १५१ ॥ 289 ) जोइय देहु परिचच्चयहि देहु ण भल्लउ होइ । देह - विभिण्णउ णाणमउ सो तुहुँ अप्पा जोइ ।। १५२ ।। 290) दुक्ख कारण मुणिवि मणि देहु वि एहु चयंति । तित्थु ण पावहिं परम-सुह तित्थु कि संत वसंति || १५३ ॥ 291) अप्पायत्तउ जं जि सुहु तेण जि करि संतोसु । पर सुहु वढ चिताह हियइ ण फिट्टइ सोसु ॥ १५४॥ 292) अपह णाणु परिच्चयवि अण्णु ण अत्थि सहाउ । इउ जाणेविणु जोइयहु परहँ म बंधउ राउ ।। १५५।। [ 281 : २-१४४ 281) Wanting in TKM; C पास कियंति, BC णीसंदेहु. 282) Wanting in TKM; तिह अप्पणउ कि. 283) Wanting in TKM. 284 ) Wanting in TKM. 85) TKM चोन्बलि चेटूठ; TKM सयलु वि देहे णिरत्थ गय जिव दुज्जण उवयारु also दुज्जगउवयारु. 286 ) TKM क किज्जइ तह राउ. 287 ) TKM तिहुवणे. 288 ) TKM लज्जइ; C धम्मइ, Brahmadeva धम्मि; TKM मुणंतु for करंतु 289) Wanting in TKM; B भल्ला. 290) Wanting in TKM; G पावई 291 ) Wanting in TKM. 292) Wanting in TKM. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001524
Book TitleParmatmaprakash
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorA N Upadhye
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1988
Total Pages182
LanguagePrakrit, Apabhramsha, English, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Spiritual
File Size13 MB
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