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ऋषिमण्डलस्तवयन्त्रालेखनम् बहिः क्षाराब्धिवलयं, श्यामलं लागतोऽक्षरैः ।
संषट्पञ्चाशता व्याप्तमन्तरद्वीपभूमिभिः ॥३॥ अनुवादः-(यन्त्रना) बहारना भागमां श्याम वर्णनुं लवण समुद्रनुं वलय करतुं । ते छप्पन (५६) अन्तरद्वीपनी भूमिओना वाचक व थी (ल नी आगळना वर्णथी) व्याप्त छ । (व्याप्त करवू) ॥३॥
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८. अर्चनाकृते-पूजा माटे। पूजा माटे निर्दिष्ट धातुना पतरा उपर अथवा कपडांना पट 5 उपर यन्त्रालेखन थाय अने रक्षा माटे भूर्जदल-भोजपत्र उपर यन्त्रालेखन थाय ।
९. कर्पूराद्यैः-कपूर वगेरे वडे--अष्टगंधवडे। बरास, केसर, कस्तूरी, सुखड, अगर, अंबर, मरचकंकोळ, काचो हिंगळोक-अष्टगंध कहेवाय छे ।
१०. सुवर्णलेखिन्या-देवनी प्रीतिनी निष्पत्ति माटे सोनानी लेखिनी वडे यन्त्रनुं आलेखन कराय पण ते न होय तो दाडमनी सळी, अघेडानी सळी पण काममां आवे ।
११. बहिः-यन्त्रना प्रस्तार- मध्यस्थान बिंदु निर्णीत करी परिमाणनी दृष्टिए सीमा अथवा मर्यादा पूरी थाय त्यां वलय करवामां आवे ते बहिर्भागनुं वलय कहेवाय ।
१२. क्षाराब्धिवलयम्-वलय के ज्यां निर्देश प्रमाणे लवणसमुद्र आलेखवानो छ। १३. लाग्रतः-बाराखडीमां 'ल'नी पछीनो अक्षर 'व' छ। 'व'कार *वरुणर्नु प्रतीक छ। १४. अक्षर-वर्ण।
१५. सषट्पञ्चाशता-लवणसमुद्रमा ५६ आन्तर द्वीपर्नु विधान आवे छे । तेथी द्वीपना निर्देश माटे ५६ 'व'कारनुं अहीं विधान छ।
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रव प्रस्तार-धातुना पतरानी अथवा चंदननी के काष्ठना फलकनी (पाटियानी) पीठ ऊपर जे यन्त्र-समग्र अथवा ओछेवत्ते अंशे-उन्नत राखीने कोराय ते मैरव प्रस्तार छे। आलेखन करवानो विभाग उपसी आवे तेवी रीते आजुबाजुनो भाग कोराय छ ।
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(३) उत्कीर्ण प्रस्तार-धातुना पतरानी के चंदनना अथवा काष्ठना फलकनी पीठ उपर जे यन्त्रना आलेखननो भाग कोतराय ते उत्कीर्ण प्रस्तार छ।
यन्त्रनो प्रस्तार (१) आलेखाय (चितराय) (२) कोराय अथवा (३) कोतराय-ते समग्र रचना निर्दिष्ट क्रम प्रमाणे अने यथाविधि करवानी होय छे।
प्रस्तारनो दरेक प्रकार मंगलमय छ। तेमा मुख्यता विधिनी (आम्नायनी) छे। * वरुण जलतत्त्वनो देव छ। जुओ—'वारुणमण्डलम् ' श्लो. १२.
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