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सारांश दर्शन आवा आलेखनवाळां यन्त्र कंठे, मस्तके अथवा हाथे बांधवाथी रक्षा थाय छे । (५) मन्त्रबीज-'ही' कारनुं स्मृति-रहस्य-श्लोक नं. २८ 'ही'कारना स्मरणमात्रथी त्रिलोकवर्ति सकल जिनबिम्बोनां दर्शन, स्तवन अने नमन जेटलो लाभ थाय छ। जिनशक्ति छे तेम उल्लेख थयो छे। शक्तिनां दर्शन द्वारा परमात्मानां दर्शन सुलभ छ।
५. आम्नाय-श्लोक नं. २९ थी नं.३१:
(१) तप वगेरे आम्नाय-श्लोक नं. २९ नीचे मापेल कोष्टक प्रमाणेआमां जे होमनुं विधान छे तेनी प्रक्रिया त्रण प्रकारे थई शके छे:
(अ) कषायचतुष्टयना अंतर्यागथी (ब) दशमा भागना विशेष जापथी अने
(क) विधि प्रमाणे हवन करवाथी आमां कोईपण प्रकारनो आश्रय लई शकाय छे; पहेलो प्रकार उत्कृष्ट छ । मन्त्राधिराजकल्पमा पूजा माटे षट्कर्म नीचे प्रमाणे छे:
* १. आह्वान २. आसन ३. सकलीकरण ४. मुद्रा ५. पूजा अने ६. जप-त्यार पछी होम । 'होम'ने आ प्रमाणे जुदो करी नाखवान कारण ए छे के तेना विकल्पोछे अने आ विकल्पो अहीं उपर दर्शाव्या छ।
(२) उत्तर-सेवा-श्लोक नं. ३० ___ अहीं सुधी पूर्व-सेवानो आम्नाय आपवामां आव्यो छे । हवे उत्तर-सेवा आपवामां आवे छे। आठ मास सुधी हमेश १०८ वार आ यन्त्रना बीज 'ही' कारर्नु जे स्मरण करे तेने गुणना संसर्ग आरोपथी संभेद ध्यान प्राप्त थाय छे। आवा ध्यानना कारणे तेने अहंत-बिंबनां दर्शन थाय छे अने तेथी तेना कर्मना ह्रासने कारणे सात भवमा ते शिवपद पामे छे।
(३) यन्त्रप्रदान–श्लोक नं. ३१
आ यन्त्र अथवा तेनी विधिनु प्रदान कोई मिथ्यादृष्टिने करवान नथी। सम्यगदृष्टि, विनीत अने ब्रह्मचर्य पाळनार ज आनो अधिकारी छे। आवा अधिकारी सिवाय कोईने आपवाथी आज्ञाभंगनुं दूषण लागे छ। ६. सारमन्त्रनी व्याख्या-श्लोक नं. ३२ थी नं. ३६:
अहीं चार श्लोकमां जाप्यमन्त्रना सार तरीके 'ॐ ही अर्ह नमः'रूप सारमन्त्रनो प्रभाव दर्शाववामां आव्यो छे। यन्त्र तथा मन्त्रना व्यावर्णननो सघळो झोक चारित्र उपर छे। रत्नत्रय ज जिनबीजनुं बीज छे तेवो अहीं स्पष्ट निर्देश कयों छे।
* सरखावो
आदौ जिनेन्द्रवपुरद्भुतमन्त्रयन्त्रा
ह्वानासनानि सकलीकरणं तु मुद्राम् । पूजां जपं तदनु होमविधि षडेव कर्माणि संस्तुतिमहं सकलं भणामि ॥२॥ ---श्रीसागरचन्द्रविरचित 'मन्त्राधिराजकल्प' द्वितीय पटल,
(श्रीजैनस्तोत्रसन्दोह, पृष्ठ २३२)
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