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________________ प्रबन्ध - चतुष्टय ॥५१७॥ ॥५१८॥ ॥५१९ ॥ ॥५२० ॥ ॥५२१ ॥ ॥५२२ ॥ पढिए तओ नरिंदण जंपियं तुज्झ अवितहं भद्द । दाहामि परं सच्चं क[64B] हेसु केणं कयं अद्धं तो तेणं सच्चं चिय नरवइणो साहियं महाराय । सिरि-बप्पहट्टि-पहुणा कत्थऽच्छइ सो तओ तेणं भणियं रायगिहम्मी धम्म-नरिदेण विहिय-सम्माणो । तं मोत्तुं को अन्नो एरिस कव्वाण इह 'कत्ता । तं सोउमट्ठ-मुहो पच्छायावो निवस्स तो जाओ । जह एवं सुसिलिटुं अद्धं तह पुव्व-भणियं पि निस्संदेहं मन्ने होही इय जाव चिट्ठई राया । पच्छायावानल-डज्झमाण-गत्तो इओ तत्थ पत्तो एगो पहिओ निय-कर-संधरिय-एक्क-गाहद्धो ।। विनविय नमिय रायं समस्सियं कुणह एईए जेणं सयमेव कवी देवो अन्ने य वर-कई संति । तुम्ह गिहे इय सु[65AJणिउं समागओ एत्थ तं चेयं 'तइया मह निग्गमणे पियाए थोरंसुएहिं जं रुन्नं ।' तेण कमेणं तं चिय सूरीहिं पूरियं एयं - 'करवत्तिय-जल-निवडंत-बिंदु तं अज्ज संभरियं' पुढे तहेव जो वाचियम्मि तह चेव रायपुरिसेहिं । आगंतूणं सिटुं नरवइ निसुणेसु जह वित्तं कर-गहिय-सेडिया-खंड-लिहिय-पुव्वद्ध-तरुतलासीणो । एगो पहिओ पंचत्तमुवगओ रन्न-मज्झम्मि अखय-सरीरो उट्ठे पसारियच्छो तहा य तत्थेव । करवत्तिया चु6ि5B]यंती दिव्व-जलबिंदुणो णेगे १. कत्तो। २. सुसलिद्धं ३. समीसियं ॥५२३ ॥ ॥५२४॥ ॥५२५ ॥ ॥५२६॥ ॥५२७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001463
Book TitlePrabandh Chatushtay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamniklal M Shah
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1994
Total Pages114
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size5 MB
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