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पादलिप्तसूरि-कथानक
ती ताई अब्भिट्ठिऊणं फुट्टाणि भोयणज्जायं । भूमीए गयं नाऊण तं च भीओ पलोएइ
तं पोत्थियं न पेच्छइ झड त्ति नट्ठो तओ पएसाओ । सूरी तं गणियाए बु[28. B] द्ध-विहारऽग्गएण गओ तच्छन्निएहिं भणिओ निवडसु बुद्धस्स हंत चलणेसु सब्भूय-वत्थु-वाईस्स वच्च मा एवमेव तुमं
सूरीहिं तओ भणियं एहि मम पुत्त पडसु चलणे । सुद्धोयणि सुय तत्तो विणिग्गया बुद्ध-पडिमा सा पडिऊण सूरि-चलणेसु पिट्ठओ चेव सूरिणो लग्गा । पुण पुण समुप्फिडंती पच्चक्खं सयल- लोयाणं ताव गया जा बाहिं पुरस्स बुद्धिंडओ समाइट्ठो । पडिम व्व सो वि पाएसु निवडिओ जंपिओ पच्छा उट्ठसु एवं ति तओ तम्मी अब्भुट्ठिओ पुणो भणिओ । एवं चिट्ठसु तह चेव सो ठिओ अज्ज वि तहेव तप्प भई सो जाओ नियं[29. A]बओणामिओ त्ति नामेण । बुद्धस्स दंसणाओ तओ विरत्तो जणो जत्थ
जिण- सासणस्स जाया विउला अब्भुन्नई तओ सूरी । काल- वसा सो जाओ जयम्मि जस-पसर - सेसो त्ि
सुरलोय - सहा- भूसण-निम्मल - चूडामणी य भयवंतो । सिरि- अज्ज - खउडसूरी एमाई जस्स माहप्पं अज्ज - खउडो आसी पाडलिपुत्ते मिच्छदिट्ठी तहिं राया
व्व अन्नो कणवीर- लयाए भामगो खुड्डो ।
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बुद्धिंदुओ
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