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प्रबन्ध - चतुष्टय
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तो तं चूरिज्जंतं लउडय-घायाइएहिं सव्वं पि । 'सिरमाईअंगेसुं धाहावइ करुण-सद्देण
॥१६९ ॥ [25.A] आदनेणं रन्ना मुक्का वडुकयस्स तो तत्ती । रना गंतुं सूरी विणएणं खामिओ एवं
॥१७० ॥ भयवं एक्कऽवराहं अम्हाणं खमह जेण सप्पुरिसा । तुम्ह समा पणयाणं नराण उवयारया हुति
॥१७१ ॥ एव भणियम्मि बहुणा पउणं अंतेउरं लहुं विहियं । जिण-सासणस्स विउला समुन्नई तत्थ संजाया
॥१७२॥ भरुयच्छे नयरम्मी इओ य तं चेल्लयं पमोत्तूणं । गउरवयं ती मुणिणो जंती भिक्खाइ-कज्जेसु
॥१७३॥ तेण वि सा सूरीणं निहालिया कवलिया उच्छोडेउं । एईए किं चिट्ठइ जेणाहं वारिओ तेहिं
॥१७४॥ तत्थ य सूरी-लिहिया कइवय-[25.B] विज्जाइ-पोत्थिया दिट्ठा । तं छोडेउं जोयइ पढमे पत्तम्मि तो विज्जा
॥१७५ ॥ दिट्ठा मोयग-तणया पुरओ तीए य फल-समिद्धीओ । जह जो जवेइ विज्जं एयं एगवीस-वाराओ
॥१७६॥ तस्सि विचिंतियाणी मोयग-फल-भरिय-भायणाणि तओ । वच्चंति पुणो वि विसज्जियाणि न य केणई सो य ॥१७७॥ उवजीवंतो दीसइ तेण तहा-चिट्ठियम्मि साहूहिं । पडियागएहिं भिक्खाइ सद्दिओ भोयणत्थं सो
॥१७८॥ जंपइ न मज्झ भुक्खा विज्जइ तह वि हु निबंधओ तेहिं । उववेसिओ स काउं मिचिमिचिउं उट्ठिओ तत्तो ॥१७९ ॥ १. सिरिमाई ० २. वडुक्कय ०
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