SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥४५ ॥ ॥४६॥ प्रबन्ध - चतुष्टय इच्चाइ महुर-वयणेहिं चित्तमावज्जिऊण तो भणिओ । कुण संपइ सामन्नं सुनिक्कलं सरय-सलिलं व ॥४२॥ तेण वि तह त्ति भणियं विहियं सव्वं पि नियय-गुरु-वयणं । पर-लोय-गए त[7B]म्मि य अह अन्नया सिद्धसेणेण । १४३ ॥ लोउत्तीए विसंठुल-पाइय-सिद्धत-लज्जमाणेणं । भणिओ संघो तुब्भे जइ भणह करेमि तो अहयं ॥४४॥ सक्कय-भास-निबद्धं सव्वं सिद्धंतमेव भणियम्मि । उल्लवियं संघेणं एएणं चिंतिएणावि जायइ गुरु-पच्छित्तं किं पुण भणिएण लोय-पच्चक्खं । इय भणिए जं जायइ जिणाइ-आसायणा तिव्वा ता जं जायं एत्थं सयमेवं तं वियाणसी कहिए । जंपई मह पच्छित्तं समागयं अंतिमं एत्थ ॥४७॥ [8A] जइ वि य तं वोच्छिन्नं संघयणाभावओ तहा वि ममं । बारस-संवच्छरियं पसायओ देउ तं संघो ॥४८॥ अब्भास-मेत्त-महयं करेमि सत्तीए जेण तो दिन्नं । तं संघेणं सो विय चरेइ सम्म अणुव्विग्गो ॥४९॥ चिंतइ मणम्मि सययं पमायओ कुणइ किंपि तं जीवो । पच्छित्ताणं एवं विहाणं जोग्गो] जओ होइ ॥५०॥ ते धन्ना पुव्व-रिसी जाणं नो खलियमागयं एत्थ । अहमवि न पुणो काहं इय चिंतंतो समणुपत्तो ॥५१॥ अट्ठ वरिसा [8B] . . .अनाय-वय-वेस-दसण-विभाओ। उज्जेणी नयरीए ठिओ कुडंगीसरीय-मढे ॥५२॥ १. पायइ २. समं ३. वहय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001463
Book TitlePrabandh Chatushtay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamniklal M Shah
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1994
Total Pages114
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy