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'प्रबन्धपंचशती'नी भाषा-सामग्री
बारमी शताब्दी पछीथी रचावा मांडेला संस्कृत प्रबन्धो ए मोटे भागे तो गुजरात-राजस्थाननो विशिष्टपणे जैन रचनाप्रकार छ । 'प्रबन्धचिंतामणि' 'चतुर्विशतिप्रबन्ध' वगेरे संग्रहाना प्रबन्धी उपरथी जोई शकाय छे के तेमां एवी व्यक्तिओनो. वृत्तांत गूथातो, जे व्यक्तिओ परंपराथी विख्यात हाय अने जेमणे जैनधर्मना वृद्धिविकास अने रक्षण-पालनमा स्मरणीय फाळो आप्यो होय । आमां जैन आचार्यो राजवीओ, मंत्रीओ, श्रेष्ठीओ वगेरे जेवी इतिहास, पुराण के दन्तकथामां जाणीती व्यक्तिओना समावेश थतो अने ए प्रभावक व्यक्तिओना चरित्रनी मुख्य विगतो अने सालवारी अथवा तो तेमना जीवननी कोई विशिष्ट घटनाओ, रसिक प्रसंगो अने टुचकाओ क्वचि- आलंकारिक भाषा अने शलीनो पुट आपीने रजू करवामां आवतां । प्रयोजन इतिहास आपवानु नहीं पण प्रभावकता दर्शाववानु हावाथी भार कथाना के दृष्टांतना तत्त्व पर रहेतो अने समय जतां. जेम 'प्रबंध पंचशती'मां बन्यु छे तेम, लोकप्रचलित के साहित्य-प्रचलित दृष्टांतकथाओ अने परंपरागत लोककथाओने पण प्रबन्धेोमां स्थान मळतुं गयु।
धार्मिक व्याख्यान प्रसंगे उपयोगमा लई शकाय ते दृष्टिए जाणे के तैयार थया' होय तेवा आ संग्रहामां भूतकाळनी अनेक शक्तिशाळी महान व्यक्तिओए जैन धर्मनी महत्ता अने गौरव वधारवा माटे करेलां कार्योनी वातो, उपरांत जीवननी सामान्य नीतिरीति माटे बोधप्रद होय तेवी घणीये लोकप्रिय कथा-वार्ताओ, प्रसंगी अने टुचकाओ पण अपायां छे ।
आ प्रबन्धसाहित्यनी संस्कृत भाषा पोतानी आगवी विशिष्टता धरावे छे । प्रबन्धोनु संस्कत ए व्याकरणनी शिष्टपरंपराने मान्य एवु विशुद्ध प्रशिष्ट संस्कृत नथी । ए संस्कृत एक प्रकारनु लौकिक संस्कृत छे । तेमां तत्कालीन लोकभाषाना, तेना उच्चारण, व्याकरण, शब्दभंडोळ अने रूढिप्रयोगोनो गाढ प्रभाव पडेलो छ । जेम जेम पाछलना समयमा आवता जईए छीए तेम तेम आ प्रभावनु' प्रमाण वधतु जाय छे. बौद्ध अने जैन ए बन्ने परंपरामां पंडितमान्य रूढ संस्कृतने बदले बोलचालना प्रयोगोना पासवाळु लौकिक संस्कृत वापरवानु वलण हतु । विशाळ मध्यम वर्गने ते समजवू सरळ पडे, व्यवहारभाषा अने उपदेशभाषा वच्चेनु अंतर ओछु थाय
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