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नवां बादळनी रेखामांथी नीसरतां जेनां निर्मळ किरणो स्फुरे छे, अने शरदनी रातमा जे प्रत्यक्ष सभर अमृत झरी रह्यो छे एवा चंद्रनुं विजयी अने प्रियतमने सुखद एवं तारुं आ मुख क्यारथी विरहाग्निना धूमे ढंकाई गयुं छे ? (१२२)
__ कहे तीक्ष्ण वक्र कटाक्षपात करतां, मदननां उद्दीपक आ तारां लोचन केटला दिवसथी झूरी रह्यां छे? कदली जेवू कोमळ तारुं अंग शोषाई रह्यं छे? अने हंसना समी तारी लीलागति सीधी बनी गई छे ? (१२३)
आ रीते हे चंचळनयना केम तुं तारा शरीरने दुःखाधीन करी रही छे, अने दुःसह विरहकरवतथी तेने वहेरी रही छे? कामदेवना बाणे केटला दिवसथी तारा चित्त पर प्रहार को छे? कहे 'सुंदरी, तारो सुभग क्यारे (परदेशे) गयो ?' (१२४)
पथिकनां वचन सांभळीने मदनने उद्दीपित करती ए दीर्धाक्षीए चार गाथा कही. (१२५)
हे पथिक, ज्यारथी मारुं सुख हराई गयुं अने बदलामा दुःखोनो पट्ट मळ्यो ए मारा प्रियना प्रवासदिवस विशे पूछवाथी शुं लाभ ? (१२६)
कहे, ज्यारे ए अरघी क्षणमा ज मने मूकीने चाल्यो गयो ए दिवस संभारवाथी शुं ? ए दिवसनुं नाम पण न लईश. (१२७)
ज्यारे ए सुभग गयो ते दिवसथी अमे निर्वृत्ति खोई छे. पथिक, निश्चितपणे काळ काळनी जेम अमारा हृदयमां परिणम्यो छे. (१२८)
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