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________________ जैन आगम साहित्य में कथाओं के प्रकार २६३ के यशस्वी लेखक जोहानेस हर्टल ने लिखा है-जैन कथा साहित्य केवल संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं के अध्ययन के लिए ही उपयोगी नही, भारतीय सभ्यता के इतिहास पर इससे महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है।...इस विशाल कथासाहित्य में जो सामग्री सन्निहित है, वह लोकवार्ता के अध्येता विद्यार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी है। ....इन विद्वानों ने हमें कितनी ही ऐसी अनुपम भारतीय कथाओं का परिचय कराया है जो हमें अन्य किसी स्रोत से उपलब्ध नहीं हो पाती। ___ भारतीय साहित्य के इतिहास के सुप्रसिद्ध लेखक मौरिस विण्टरनित्सने लिखा है-“जैन कथाकारों ने यत्र-तत्र बिखरी हुई लोककथाओं को अपने धार्मिक आख्याने में स्थान देकर इस विपुल साहित्य को सुरक्षित रखने में सहायता की है, अन्यथा हम इससे वंचित ही रह जाते । टिप्पणी १. पृष्ठ २०८, पक्ति २३-२८ । सथाली कहानियो में भी यह पहेली बुझाई गई है । कोटा अपने माथी से कहता है कि हम दोनों बारी-बारी से एक -दूसरे को कंधे पर बैठाकर ले चलें जिससे माग जन्य थकान न हो । इस पहेली का मतलब है कि हम एक-दूसरे को कहानी सुनाते हुए चले जिससे रास्ता सुख से कट जाय । सी. एच. बोम्पास, फोकलोर आँव संधल परगनाज , पृ. २६९ आदि । हरिषेण-कृत 'बृहत्कथाकोश' में श्रेणिक आख्यान (५५. ४३-६६) के अतर्गत यही प्रस'ग उपस्थित किया गया है । २. उत्तगध्ययन की कथाओं का जमन अनुवाद Dic Bekchrung des konigs Nami (राजा नमि की प्रव्रज्या) शीर्षक के अन्तगत, हस्तलिखित जैन लघुचित्रों के साथ जमन गगत त्र, बलिन के प्रोफेसर डाक्टर वोल्फनगांग मौगें नरोथ द्वारा किया गया है (१९७९) । ३. जहा दुमस्स पुप्फेसु भमरो आवियइ रस' । न य पुप्फ किलामेइ सो य पीगेइ अप्पय ।। तुलना कीजिए : यथापि भमरो पुप्फ वणगध अहेठय । पलेति रसमादाय एव' गामे मुनी चरे ॥ - धम्मपद, पुप्फ फग्ग ६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
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