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________________ तिलोयपण्णति में प्राप्त ऋषभदेव की कुछ ति थैयाँ २३१ में विशेष खोज होनी चाहिये। इस सम्भावना को भी ध्यान में रखना होगा कि यदि पारणा तिथि ौशाख शुक्ला तृतीया सही है तो उसके एक वर्ष पूर्व ठौशाख शुक्ला तृतीया को ही भगवान ऋषभदेवने दीक्षा ली हो, चैत्राकृष्णा नवमी को नहीं। किन्तु किसी भी ग्रन्थ में दीक्षातिथि के सम्बन्ध में मतभेद अभी प्राप्त नहीं है, सिवाय नवमी या अष्टमी के । स्वयं पुष्पदंतने अपने महापुराण में वसन्त (चैत्र) माह के कृष्णपक्ष की नवमी के दिन ऋषभदेव की दिगबरी दीक्षा होना स्वीकार किया है मोहजालु जिह मेल्लवि अबरु, झत्ति महामुणि हुवउ दियंबरु । उत्तरसाढरिक्खिणवमिइ दिणि, महुमासह पक्रवम्मि सियचंदिणि ॥ ___ - महापुराण ८.२६ पुष्पदन्त ही प्रथम कवि है, जो ऋषभदेव की पारणा-तिथि के दिन को अक्षयतृतीया के रूपमें प्रसिद्ध होना मानते है । अतः यह समस्या विभिन्न स्रोतों से प्रामाणिक साक्ष्य मिलने पर ही साबित हो सकेगी । २. निर्वाण-तिथि की समस्या : तिलोयपण्णत्ति में भगवान् ऋषभदेव की निर्वाण-तिथि को तीन गाथाओ द्वारा प्रस्तुत किया गया है । गाथा १९६६ में कहा गया है कि ऋषभ माध कृष्णा चतुर्दशी पूर्वान्ह में अपने जन्म नक्षत्र (उत्तराषाढ) के रहते कैलाश पर्वत से दस हजार मुनिराजों के साथ मोक्ष को प्राप्त हुए । गाथा १२५० में कह। गया है कि ऋषभ जिनेन्द्र तृतीय काल में ३ वर्ष-साढे ८ माह शेष रहने पर मोक्ष गये ।४° तथा गाथा १२८७ में निर्देश है कि ऋषभ के मोक्षगमन के पश्चात् ३ वर्ष साढे ८ माह व्यतीत होने पर चतुर्थ काल का प्रवेश हुआ ।४१ इन तीनों संन्दर्भो से स्पष्ट है कि ऋषभदेवने अपनी ८४ लाख पूर्व की आयु पूर्ण कर तृतीय काल में जब ३ वर्ष साढे आठ माह शेष थे तब माघ कृष्णा चतुर्दशी को निर्वाण प्राप्त किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
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