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________________ १९८ कु. रीता बिश्नोई आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्धकी तृतीय चूलामें पाँच महाव्रतोंकी भावनायें बतलाई गई हैं जिनके पालनसे महाव्रतोंकी रक्षा होती है । इसमें ईर्या विषयक समितिमें -गमनागमन सम्बन्धी सावधानीका विस्तृत वर्णन किया गया है । मुनि संयमपूर्वक चित्तको गतिमें एकाग्र कर, पथ पर दृष्टि टिका कर चले । जीव-जन्तुको देख कर पैर संकुचित कर ले और मार्ग में आनेवाले प्राणियों को देखकर चले। - वशिष्ठ धर्मसूत्र और शखधर्म सूत्र के अनुसार यतिको गाँवसे बाहर रहना चाहिये तथा एक स्थानसे दूसरे स्थान तक चलते रहना चाहिये, केवल वर्षाके मौसममें ही वह एक स्थान पर ठहर सकता है । मिताक्षर (याज्ञवल्क्य ( 3-57) द्वारा उद्धृत शंखके वचनसे पता चलता है कि संन्यासी वर्षा ऋतुमें एक स्थान पर केवल दो मास तक रुक सकता है । जैन आचार शास्त्र आचारांगके द्वितीय श्रुतस्कन्धकी प्रथम चूलाके द्वितीय अध्ययनमें इस विषयकी सुन्दर विवेचना उपलब्ध है । यहाँ कहा गया है कि वर्षाऋतुके आगमन होने पर भिक्षु या भिक्षुणी को किसी निर्दोष स्थान पर वर्षावास (चातुर्मास) करके ठहर जाना चाहिये । वैदिक धर्मशास्त्र के अनुसार यतिको न तो भविष्यवाणी करके, शकुनाशकुन बतलाकर, ज्योतिषका प्रयोग करके, विद्या, ज्ञान आदिके सिद्धान्तोंका उद्घाटन करके और न विवेचन करके भिक्षा मांगनेका प्रयत्न करना चाहिये ।" जैनागम आचारांगके द्वितीय श्रुतस्कन्धकी प्रथम चूलाके पिण्डैषणा नामक प्रथम अध्ययनमें भिक्षु-भिक्षुणीकी पिण्डैषणा-आहारकी गवेषणाके विषयमें विधि-निषेधों का निरूपण है । उत्तराध्ययन में कहा गया है कि जो साधक विभिन्न प्रकारकी विद्याओं जैसे स्वप्न, लक्षण, दण्ङ, अंगस्फुरणादि के द्वारा जीविका नहीं करता वही सच्चा भिक्षु है । वैदिक धर्म सूत्रकारों के अनुसार यतिको अपमानके प्रति उदासीन रहना चाहिए । यदि कोई उसके प्रति क्रोध प्रकट करे तो क्रोधावेशमें नहीं आना चाहिए । यदि कोई उसका बुरा करे तो भी उसे कल्याणप्रद शब्दोंका ही उच्चारण करना चाहिये और कभी भी असत्य भाषण नहीं करना चाहिये। जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001431
Book TitleJain Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages330
LanguagePrakrit, Hindi, Enlgish, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & agam_related_articles
File Size18 MB
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